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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४२६

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बख्तसिंह के द्वारा मारवाड़ से निकाले जाने पर रामसिंह जयपुर में रहने लगा और वह अपने उद्देश्य की सफलता के लिये तरह-तरह की चेष्टायें कर रहा था। वख्तसिंह की मृत्यु के बाद रामसिंह ने विजयसिंह के सिंहासन पर बैठने के समय कठोर वाधायें उपस्थित की और जब वह इसमें सफल न हो सका तो वह विजयसिंह को पराजित करने और सिंहासन से उतार देने की कोशिश करने लगा। रामसिंह इन दिनों में जयपुर में रहा करता था और इसके सम्बन्ध में सभी प्रकार के परामर्श वह राजा जयपुर के साथ किया करता था। राजा जयपुर इस बात को भली-भाँति समझता था कि मारवाड़ के सामन्तों और सरदारों ने जब विजयसिंह को सिंहासन पर बिठाकर उसका प्रभुत्व स्वीकार किया है तो रामसिंह के विरोध करने से उसमें कुछ नहीं हो सकता। नैतिक रूप से विजयसिंह को सिंहासन से उतारने का कोई रास्ता रामसिंह और उसके सहायकों के सामने न था। इसलिए उसने अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के लिए दूसरे उपायों का सहारा लिया। उन दिनों में दक्षिण के मराठों ने संगठित होकर अपनी शक्तियाँ मजबूत बना ली थीं। रामसिंह ने उन्हीं मराठों का सहारा लेने का निश्चय किया। इसके पहले रामसिंह के पुरोहित ने मराठों के पास जाकर उनकी सहायता प्राप्त करने की चेष्टा की थी। परन्तु उसमें रामसिंह को सफलता न मिल सकी। इस समय मराठों को बख्तसिंह का भय न रह गया था। इसलिए रामसिंह ने निर्भीक होकर मराठों के साथ सन्धि की। उसके बाद मराठा सेना दक्षिण से चलकर कोटा होती हुई जयपुर में आ गयी। रामसिंह मराठा सेना के साथ जयपुर से जोधपुर के लिए रवाना हुआ। मराठा सेना लेकर रामसिंह के आने का समाचार मारवाड़ में पहुँच गया। वहाँ के लोगों में यह अफवाह फैलने लगी कि मराठा लोग इस राज्य में आकर भीषण अत्याचारों के साथ लूटमार करेंगे। इसलिए रामसिंह के इस आक्रमण को व्यर्थ करने के लिए राठौड़ राजपूतों के कई दल मेड़ता के मैदानों में आकर एकत्रित होने लगे। मराठा सेना के साथ पुष्कर तीर्थ में पहुँचकर रामसिंह ने अपने दूत के द्वारा विजय सिंह को संदेश भेजा कि - "तुम इसी समय राज सिंहासन छोड़कर अपने प्राणों की रक्षा करो, अन्यथा तुम्हारी कुशल नहीं है।" विजयसिंह ने अपने समस्त सामन्तों के सामने रामसिंह का भेजा हुआ संदेश प्रकट किया। उसकी बात सुनकर सभी राठौड़ सामन्त क्रोध में आकर एक साथ कह उठे - “हम लोग युद्ध के लिये तैयार हैं । हमें मराठों का कोई भय नहीं है।" उत्तेजित राठौड़ सामन्तों ने एक मत से युद्ध का समर्थन किया। विजयसिंह ने रामसिंह के संदेश का जवाब भेज दिया। रामसिंह के साथ जो मराठा सेना आयी थी, वह राठौड़ सेना के मुकाबले में अधिक विशाल थी। उसके साथ जयपुर के कछवाहों को सेना भी थी। राठौड़ राजपूतों को जयपुर की सेना की कुछ भी परवाह न थी। लेकिन मराठों की विशाल सेना को पराजित करने के लिये राठौड़ सामन्त आपस में परामर्श करने लगे। विजयसिंह युद्ध की तैयारी करके जोधपुर में एकत्रित सेनाओं के साथ मेड़ता के मैदानों में पहुँच गया । यहाँ पर मराठा सेना के साथ युद्ध करके उसको मारवाड़ के सिंहासन के अधिकारी का निर्णय करना था। दोनों ओर की सेनाओं का सामना हुआ और युद्ध आरम्भ हो गया। इस संग्राम में कुछ ही समय की मारकाट करके राठौड़ों ने मराठों के छक्के छुड़ा दिये। 472