पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४२७

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इस भयानक युद्ध में दो घटनायें राठौड़ों के विरुद्ध पैदा हुईं। यदि ये घटनायें न होती तो राठौड़ों ने निश्चित रूप से मराठों को पराजित किया होता। पहली घटना यह हुई कि जिस समय राठौड़ों की अश्वारोही सेना युद्ध-क्षेत्र से भाग कर लौट रही थी, राठौड़ों की दूसरी सेना ने उसको शत्रु सेना समझकर उस पर भीषण रूप से गोलों की वर्षा की। जिससे राठौड़ों की सवारों की सेना को बहुत क्षति पहुँची और अचानक उसके बहुत से शूरवीर मारे गये। दूसरी घटना भी कुछ इसी प्रकार की थी। मराठा सेना का प्रधान सेनापति सिंधिया जिस समय युद्ध क्षेत्र को छोड़कर भागने को था, ठीक उसी समय राठौड़ सेना छिन्न-भिन्न हो गयी। किशनगढ़ और रूपनगर के दोनों राजा राठौड़ वंश में ही उत्पन्न हुये थे। परन्तु दोनों अपने-अपने राज्यों में स्वाधीनता के साथ शासन करते थे और मुगल बादशाह के प्रभुत्व को स्वीकार करते थे। किशनगढ़ के राजा ने रूप नगर के राजा को सिंहासन से उतार कर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया था। रूप नगर का राजा सामन्त सिंह अपनी वृद्धावस्था के कारण जमुना नदी के किनारे वृन्दावन चला गया और वहाँ पर वह वैराग्य लेकर अपने दिन व्यतीत करने लगा। सामन्तसिंह के पुत्र को पिता के सन्यास ले लेने से बहुत शोक पहुँचा। वह किसी प्रकार अपने राज्य का उद्धार करना चाहता था। उसने अपने पिता से भेंट की और बहुत-सी बातें उसने कहीं। लेकिन पिता पर कोई प्रभाव न पड़ा और उसने पुत्र को स्वयं समझाने की चेष्टा की कि संसार के इस माया जाल को छोड़कर तुमको भी अलग हो जाना चाहिये। पिता की इन बातों को सुनकर उसके पुत्र को बड़ी निराशा हुई। वह पिता के पास से लौट कर आया और राज्य के उद्धार के लिये वह तरह-तरह की बातें सोचने लगा। इन्हीं दिनों में विजय सिंह के साथ रामसिंह का संघर्ष बढ़ा। सामन्त सिंह के बेटे ने इसको अपने लिए एक अवसर समझा और वह रामसिंह के दूत के साथ दक्षिण में मराठों के पास पहुँच गया। वहाँ पर रामसिंह ने दूत के साथ-साथ अपनी सहायता के लिए भी मराठों से प्रार्थना की। मेड़ता के युद्ध में जिस समय मराठा सेना पराजय की अवस्था में पहुँच रही थी और अपने प्राणों की रक्षा के लिये युद्ध से वह भागना चाहती थी, ठीक उसी समय मराठा सेनापति जय अप्पा ने सामन्त सिंह के बेटे को बुलाकर कहा : 'आपका और रामसिंह का मामला एक साथ है और एक सा है। हम लोग रामसिंह की सहायता करने के लिये आये थे। लेकिन युद्ध की परिस्थिति बिल्कुल हम लोगों के विपरीत जा रही है। इससे जाहिर होता है कि रामसिंह का भाग्य अच्छा नहीं है। अब प्रश्न यह कि हम लोग इस समय आपकी सहायता कर सकते हैं?" वह युवक मराठा सेनापति की इन बातों को सुनकर घबरा उठा। उसको इस प्रकार की आशा न थी। उसी समय उसने गंभीरता से काम लिया। वह समझता था कि इस समय राठौड़ सेना को पराजित करना साधारण बात नहीं है। इसलिये उसने सूक्ष्म दृष्टि से काम लिया और तुरन्त उसने अपने एक जातीय अश्वारोही सैनिक को समझा-बुझाकर शत्रुओं की तरफ भेज दिया। वह अश्वारोही सैनिक राठौड़ों की सेना में पहुँचा और वहाँ पर उसने माईनोत राजपूत वंश के सेनापति से कहा : “विजयसिंह शत्रु की गोली से वहाँ मारा गया। इसलिये अब किसके लिये युद्ध होगा।" माईनोत सामन्त ने उस अश्वारोही सैनिक को अपना समझकर विश्वास किया। वह तुरन्त अधीर हो उठा। विजयसिंह की मृत्यु का समाचार राठौड़ सेना में फैल गया। किसी ने 473