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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४४

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1 स्कैंडीनेविया की असी जाति और जर्मन जातियों में मदिरा पीने का प्रचार प्राचीन काल में अधिक था। मदिरा सेवन में भी राजपूत जातियों के लोग सीथिया और यूरोप के लोगों से किसी प्रकार कम नहीं हैं। मदिरा और मादक द्रव्यों के सेवन की आदत भारत में दूसरे देशों से आयी है। राजपूत लोग अपने अतिथि का सत्कार करना खूब जानते हैं। यहाँ तक कि शत्रुओं के साथं भी जब वे एक वार खा-पी लेते हैं तो उनकी शत्रुता के भाव मिट जाते हैं। इस प्रकार की आदतें भी सीथियन तथा जर्मनों के पुराने लोगों में पायी जाती थीं। युद्ध के देवता थोर की पूजा करने वाले स्कैंडीनेविया के लोग मनुष्य की, विशेषकर शत्रु की खोपड़ी का प्याला बनाकर रक्त का पान करते थे। उनकी इस प्रथा की समता वहुत-कुछ राजपूतों के देवता महादेव के साथ होती है। महादेव के सम्बंध में इस प्रकार की बातें पढ़ने और सुनने को मिली हैं। महादेव उन सवका रक्षक है, जो सुरा और संग्राम से प्रेम करते हैं। राजपूतों की विशेष श्रद्धा महादेव पर रहती है और इसी आधार पर अपने प्रधान देवता को अर्घ्य देने के लिये रक्त और मदिरा को वे मुख्य पदार्थ मानते हैं। मनुष्य के लड़ने के बाद मृतक की जो अंतिम क्रिया होती है, उसके सम्बंध में भी प्राचीन जातियों की एकता और समानता मिलती है। इसके सम्बंध में स्कैंडीनेविया में दो प्रकार की प्रथायें पायी जाती थीं। एक तो मृत शरीर को आग में जलाकर भस्म कर देने की और दूसरी उसको पृथ्वी में गाड़ देने की। ओडिन वुध ने मृत शरीर को पृथ्वी में गाड़ देने की प्रथा का प्रचार किया और वहां पर समाधि वनाने की रस्म भी उसके द्वारा चालू हो गयी। उसी समय मृत पति के साथ उसकी पत्नी के जल जाने की प्रथा का भी प्रचार हुआ। इस प्रकार की बातों का प्रचार भारत में शक द्वीप से अथवा शक-सीथिया से आकर हुआ। हेरोडोटस ने लिखा है-सीथिया में लोग मरने पर चिता में जलाये जाते थे और उनके साथ उनकी पत्नी जीवित जला दी जाती थी। स्कैंडीनेविया के जेटी, सीवी अथवा सुएवी लोगों में मृत-व्यक्ति के यदि एक से अधिक स्त्रियाँ होती थीं, तो उसकी बड़ी स्त्री को ही अपने पति के साथ जलने का अधिकार था। पति के साथ चिता बनाकर पत्नी के जलने की प्रथा राजपूतों में ठीक उसी प्रकार की है जिस प्रकार उसकी प्रथायें अन्य जातियों के सम्बंध में ऊपर लिखी गई हैं। इसका , साफ-साफ अर्थ यह है कि आदि काल में सीथिक, स्कैंडीनेविया और राजपूत जातियाँ एक थीं। हेरोडोटस लिखता है-"सीथियन जेटी लोगों की चिता पर उनके घोड़े जीवित जलाकर उनका बलिदान किया जाता था और स्कैंडीनेविया के जेटी लोगों के मृत शरीर के साथ उनके घोड़े और उनके अस्त्र-शस्त्र जमीन में गड़वा दिये जाते थे। उन लोगों का विश्वास था कि मरने पर मृतक अपने घोड़े पर बैठकर और अपने शस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने प्रभु के पास पहुँचेगा, अन्यथा उसे स्वर्ग में पहुँचने के लिये पैदल ही चलना पड़ेगा। राजपूतों में भी उनके घोड़ों के वलिदान की प्रथा इससे मिलती-जुलती है। राजपूत का मृत शरीर शस्त्रों से सुसज्जित चिता पर रखा जाता है और उसका घोड़ा उसके साथ जलाया नहीं जाता, बल्कि उसके देवता के नाम पर उसके किसी पुजारी को अर्पण कर दिया जाता है। जो राजपूत युद्ध में मारे जाते हैं, उनके चबूतरे, स्तम्भ और किसी अन्य प्रकार के स्मारक वनवाये जाते हैं और इस प्रकार के स्मारक अथवा उनके चिह्न सम्पूर्ण राजस्थान में अव तक पाये जाते हैं जिन पर मृतक को घोड़े पर सवार और सभी प्रकार के शस्त्रों से 44