को सामन्तों का यह निर्णय मालूम हो गया। उसने एक बार सामन्तों को अनुकूल बनाने में सफलता प्राप्त की थी। उसी विश्वास पर वह इस वार फिर सामन्तों के पास गया और गुप्त रूप से उसने अपना एक पत्र रास के सामन्त के पास भेजा। उस सामन्त ने विजय सिंह की युवती प्रेमिका उपपली के पास जाकर कहा-“महाराज ने सामन्तों के पास पहुँचकर आपको बुलाने के लिए हमें भेजा है। आपके साथ चलने के लिए राज्य की संरक्षक सेना तैयार हैं। इसलिए आप तुरन्त हमारे साथ चलिए।" उपपली ने सामन्त का विश्वास किया और अपने महल से निकलकर जिस समय वह सवारी पर बैठने लगी, उसी समय तलवार के आघात से उसका मस्तक गर्दन से कटकर नीचे गिर गया। उसके प्राणों का अन्त करके रास का सामन्त भीमसिंह को लेकर सेना के साथ अपने स्थान पर पहुँच गया। यदि रास का सामन्त भीमसिंह को वहाँ न ले जाकर एकत्रित सामन्तों के पास लेकर गया होता निश्चित रूप से सामन्तों ने अपने पहले के निर्णय के अनुसार विजय सिंह को सिंहासन से उतार कर भीम सिंह को उसके स्थान पर बिठा दिया होता। उस युवती के मारे जाने का समाचार एकत्रित सामन्तों और विजयसिंह ने एक साथ सुना । सभी लोग वहाँ से उठकर भीमसिंह के पास पहुँच गये। विजय सिंह सामन्तों के साथ था। इसलिए सामन्तों को अपने उद्देश्य में सफलता न मिली। विजय सिंह ने वहाँ पर सवको प्रसन्न करने के लिए बातें की और भीमसिंह को सोजत और सिवाना का अधिकार देकर सिवाना के दुर्ग में भेज दिया। भीमसिंह ने संतुष्ट होकर उसे स्वीकार कर लिया। उसके चले जाने के बाद विजय सिंह ने अपने बड़े पुत्र जालिम सिंह को बुलाया। मारवाड़ राज्य का वास्तव में वही उत्तराधिकारी था। विजय सिंह ने जव मानसिंह (दत्तक पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी बनाया था उस समय जालिम सिंह को को बहुत असंतोष हुआ था। इसलिए उसके इस असंतोष को दूर करने के लिए विजय सिंह ने उसको गोडवाड़ का पूरा अधिकार देकर वहाँ भेज दिया। उसके जाने के समय विजय सिंह ने चुपके से उसको आदेश दिया कि तुम भीमसिंह पर आक्रमण करके उसे राज्य से निकाल दो। जालिम सिंह ने इसे स्वीकार कर लिया। गोडवाड़ राज्य में पहुँचकर पिता की आज्ञानुसार जालिम सिंह ने भीमसिंह पर आक्रमण करने की तैयारी की, वह अपनी सेना लेकर रवाना हुआ। भीमसिंह को यह समाचार पहले से ही मालूम हो चुका था। जालिम सिंह के वहाँ पहुँचते ही दोनों तरफ से युद्ध आरंभ हुआ। जालिम सिंह की सेना के मुकाबले में भीमसिंह की सेना बहुत छोटी थी। इसलिए युद्ध के अंत में भीमसिंह की पराजय हुई और वह युद्ध से भागकर पोकरण के सामन्त के यहाँ चला गया और वहाँ से वह जैसलमेर पहुँच गया। इन दिनों में मारवाड़ राज्य में बड़ी अशान्ति पैदा हो गयी थी। राज्य की तरफ से व्यवस्था न होने के कारण भयानक रूप से अराजकता बढ़ रही थी। राज्य के सभी सामन्त विजय सिंह के विद्रोही हो रहे थे। इस प्रकार न जाने कितनी बातें पैदा होकर राज्य का विनाश और विध्वंस कर रही थी। उन्हीं दिनों में जोधपुर के सिंहासन पर इकत्तीस वर्ष वैठकर सन् 1850 के आषाढ़ महीने में विजय सिंह की मृत्यु हो गयी।1 1. कुछ अधिकारियों ने लिखा है कि विजयसिंह ने जोधपुर के सिंहासन पर बैठ कर इकतालिस वर्ष राज्य किया था। उसका जन्म सन् 1732 में हुआ था और सिंहासन पर बैठने के समय उसकी अवस्था वीस वर्ष की थी। 487
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