पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/४८४

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परिशिष्ठ अफीम का व्यवसाय इस ग्रंथ में राजपूतों के अफीम सेवन करने का उल्लेख अनेक स्थानों पर किया गया। इससे यह जाहिर है कि राजपूत लोग और विशेष कर राजा और नरेश अफीम का सेवन किया करते थे। यह अफीम खाने-पीने के अन्यान्य पदार्थों की भाँति उनके लिए आवश्यक हो गयी थी, जिसके द्वारा उनकी शारीरिक और नैतिक शक्ति को भयानक आघात पहुँचा था। अफीम का सेवन और व्यवसाय राजपूतों के साथ-साथ अन्य लोगों में किस प्रकार बढ़ा था, उनके ऐतिहासिक तथ्य यहाँ पर देने की हम चेष्टा करेंगे। राजस्थान के सभी राज्यों में प्राचीन काल से अफीम के सेवन की आदतें चली आ रही थीं। इन आदतों के कारण उन राज्यों में अफीम की खपत बढ़ने लगी और उसने धीरे-धीरे एक विस्तृत व्यवसाय का रूप धारण किया। यह खपत जितनी ही बढ़ती गयी, उसके व्यवसाय में उतनी ही उन्नति होती गयी और व्यवसाय में जितनी ही वृद्धि हुई, राज्यों में उसके सेवन का उतना ही विस्तार होता गया, जिससे वहाँ के लोगों के स्वास्थ्य को बहुत क्षति पहुंची। गवर्नर जनरल के एजेण्ट लेफ्टिनेन्ट कर्नल ई. आर. सी. बाँडफोर्ड सी. एस. आई. ने राजस्थान में जाकर वहाँ के शासन के सम्बंध में जो विस्तृत वर्णन अंग्रेज गवर्नमेंट के पास भेजा था। उसमें उसने लिखा था :- राजस्थान के बड़े-बड़े व्यवसायी अपने धन के प्रलोभन में अफीम के व्यवसाय को बढ़ाने में लगे हुए हैं । बड़े व्यवसायी अपने से छोटे व्यवसायियों को पहले से ही रुपये देते हैं और वे छोटे व्यवसायी महाजनों को रुपये देते हैं। महाजनों के द्वारा गाँवों के रहने वाले कृषकों को उन रुपयों से ऋण मिलता है। रुपये लेकर कृषक अफीम तैयार करते हैं और उसे महाजनों को देते हैं। ग्राम का महाजन उस अफीम को लेकर रुपया देने वाले व्यासायियों के पास पहुँचा देता है और वे व्यवसायी उस अफीम को बड़े व्यवसायियों के पास पहुँचाने का काम करते हैं। उनके द्वारा अफीम की विक्री का कार्य राज्यों में सर्वत्र होता है। इस प्रकार अफीम के व्यवसाय में सभी राज्यों ने लगातार उन्नति की है। अफीम का व्यवसाय जितना बढ़ता गया, सर्वसाधारण में उसके सेवन का विस्तार उतना ही अधिक होता गया। इन दिनों में अफीम की बिक्री इन राज्यों में बहुत अधिक मात्रा में होती है । कृषक अफीम की खेती करते हैं और इस व्यवसाय में तरक्की करने के लिए कुए खुदवा कर कृपकों की खूब सहायता की गयी है। इस कार्य के लिए बड़े-बड़े व्यवसायियों ने बहुत अधिक रुपया बाँटा है। कुओं की संख्या काफी बढ़ जाने के कारण अफीम की खेती में बड़ी सहायता मिली । इन राज्यों में अफीम की जितनी विक्री बढ़ गयी है, उतनी ही पोस्त को डोडा विकता है। जिन खेतों में पहले दूसरे अनाजों को पैदा करने का कार्य होता था उन सब में पोस्त का डोडा की खेती की जाती है। इस व्यवसाय के बढ़ जाने के कारण अफीम की कीमत लगातार घटी है और उसका परिणाम यह हुआ कि गरीब से गरीब आदमी भी अब उसका सेवन करने लगा है। अच्छी अफीम रुपये के लोभ में चीन और दूसरे देशों को भेज दी जाती है। लेकिन साधारण दर्जे की अफीम यहीं पर रखकर देश में सर्वत्र उसकी बिक्री होती है। इसकी खेती में बट्टी नाम । - 530