था और पंजाब में उसे भीषण संग्राम करना पड़ा था। लेकिन जोहिया के जाटों पर सिकन्दर के आक्रमण करने का कोई उल्लेख इतिहास में नहीं पाया जाता। हो सकता है कि सिकन्दर के जिस यूनानी सेनापति ने समुद्र के समीप अपना राज्य कायम किया था,उसने किसी समय जोहिया पहुँचकर दादूसर पर आक्रमण किया हो और वहाँ के विध्वंस के साथ-साथ उसने इस रंगमहल को वरवाद किया हो। रायसिंह के भाई रामसिंह ने जोहिया के जाटों को दमन करके अपनी सेना के साथ पूनिया की तरफ जाने का इरादा किया। बीका के वंशजों ने गोदारा और जोहिया के जाटों को पराजित कर लिया था। परन्तु पूनिया के जाट अभी तक स्वतंत्र जीवन व्यतीत कर रहे थे। रामसिंह अपनी सेना के साथ वहाँ पहुँच गया। पूनिया के जाटों ने शक्ति भर युद्ध करके राठौर सेना का मुकावला किया। अंत में उनकी पराजय हुई और राठौर सेना ने उनके राज्य पर भी अधिकार कर लिया। रामसिंह ने इन दिनों में जिन राज्यों पर अधिकार किया था, वहीं पर उसने रहने का विचार किया। जिन जाटों ने पराजित होने के बाद राठौरों की अधीनता स्वीकार की थी, वे अव तक विद्रोही बने हुए थे और उन्होंने अवसर पाकर रामसिंह को जान से मार डाला। रामसिंह के मारे जाने पर भी वहाँ के जाट राज्यों पर राठौरों का शासन कायम रहा। रामसिंह के जीवनकाल में वहाँ पर बहुत से राठौर रहने लगे थे और उन्होंने वहाँ के बहुत से प्रसिद्ध नगरों पर अधिकार कर लिया था। उन राठौरों के वंशज अब तक रामसिंहोत के नाम से प्रसिद्ध हैं। रामसिंह के जीते हुए राज्यों के द्वारा बीकानेर राज्य की वृद्धि हुई थी लेकिन रामसिंहोत राठौरों ने काँधलोतों की तरह वीकानेर के राजा के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया। रामसिंहोत राठौर जिन नगरों में रहते थे, उनमें दो प्रमुख थे, सीधमुख और साँखू। पूनिया को पराजित करने के बाद जाटों के छः राज्य राजा वीकानेर के अधिकार में आ गये। वहाँ के जाट लोग खेती और पशुओं के पालन का काम करते थे। इन राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता खोकर बीकानेर को कर देना स्वीकार कर लिया। राजा रायसिंह ने मुगल सम्राट की प्रधानता स्वीकार ली थी और उसके बाद उसने अपने राज्य को शक्तिशाली बना लिया। मुगलों को उन दिनों में जो युद्ध करने पड़े थे, उनमें रायसिंह ने भी राठौर सेना को लेकर युद्ध किया था। उसने अहमदाबाद के शासक मिर्जा मोहम्मद हुसैन के साथ युद्ध करके उसको पराजित किया और अहमदावाद पर अधिकार कर लिया। इससे मुगल-दरवार में उसका सम्मान वहुत बढ़ गया। राजस्थान के राजाओं से मेल करके अथवा उनको पराजित करके अकवर वादशाह ने मुगल साम्राज्य की बहुत बड़ी उन्नति की थी। वहाँ के जिस राजा को अकवर अधिक शक्तिशाली समझता था, उसके साथ मित्रता कायम करने के लिए उसने वड़ी बुद्धिमानी और राजनीति से काम लिया था। रायसिंह की योग्यता और रण-कुशलता को देखकर वादशाह अकवर बहुत प्रभावित हुआ था। इसलिए उसके सम्बन्ध को स्थायी और सुदृढ़ बनाये रखने के लिए उसने अपने लड़के शाहजादा सलीम का विवाह रायसिंह की लड़की के साथ करने का इरादा किया। रायसिंह ने इसे स्वीकार कर लिया। इस विवाह के बाद रायसिंह की लड़की से जो लड़का पैदा हुआ, 540
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