उसका नाम परवेज रखा गया। राजा रायसिंह ने वादशाह अकवर के साथ सम्बन्ध जोड़कर अपने राज्य बीकानेर की सभी प्रकार उन्नति की। इसके बाद सन् 1632 ईसवी में इस संसार को छोड़कर उसने परलोक की यात्रा की। रायसिंह के मर जाने के बाद उसका लड़का कर्णसिंह अपने पिता के सिंहासन पर बैठा। रायसिंह के जीवन काल में ही उसने मुगल-सम्राट की अधीनता में दो हजार अश्वारोही सेना के अधिकारी का पद प्राप्त करके सम्मान पाया था और वादशाह ने उसे दौलतावाद का शासक नियुक्त किया था। कर्णसिंह सुलतान दारा शिकोह के साथ विशेष अनुराग रखता था। इसका परिणाम यह हुआ कि दारा शिकोह के जो विरोधी थे, वे कर्णसिंह के साथ ईर्ष्या और द्वेष रखने लगे। उन विरोधियों ने कर्णसिंह की हत्या करने के लिए एक पड़यंत्र की रचना की। परन्तु वह षडयंत्र बूंदी के राजा को मालूम हो गया और उसने कर्णसिंह को सावधान कर दिया। सिंहासन पर बैठकर कर्णसिंह ने कई वर्ष तक वड़ी योग्यता के साथ शासन किया। इसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी। उसके चार लड़के थे-पद्मसिंह, केशरी सिंह,मोहनसिंह और अनूपसिंह । कर्णसिंह के इन चार लड़कों में पहला और दूसरा युद्ध में उस समय मारा गया, जव वे दोनों अपनी राठौर सेना को लेकर मुगल वादशाह की तरफ से युद्ध करने गये थे। दक्षिणी भारत को विजय करने के लिए मुगल बादशाह की जो फौज गयी थी, उसकी सहायता में कर्णसिंह के चारों लड़के राठौर सेना के साथ गये थे। उनमें पद्मसिंह व केशरी सिंह मारे गये। वहीं दक्षिण में वादशाह के शिविर में एक घटना हुई। कर्णसिंह का तीसरा लड़का मोहनसिंह मुगल सेना के शिविर में बैठा था और वहीं पर शाहजादा मोअज्जम भी था। एक हिरन के वच्चे के लिए मोअज्जम के साथ मोहनसिंह का झगड़ा हो गया। उस झगड़े में दोनों ने तलवारें निकाली और एक-दूसरे पर आक्रमण किया। मोअज्जम की तलवार से मोहनसिंह जख्मी हुआ और गिरते ही उसकी मृत्यु हो गयी। तवारीख फरिश्ता में लिखा है कि इस दुर्घटना को सुनकर राजस्थान के उन राजाओं पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा जो वादशाह की तरफ से युद्ध करने के लिए दक्षिण में गये थे और वे सभी राजपूत क्रोधित होकर वादशाह के शिविर से वीस मील की दूरी पर चले गये। तवारीख फरिश्ता के अनुसार दक्षिण में वीजापुर का युद्ध इस घटना के बाद हुआ, जिसमें कर्णसिंह के दोनों लड़के मारे गये थे। अव अनूपसिंह अपने पिता का अकेला लड़का रह गया था। कर्णसिंह के परलोक वास करने पर उसने सन् 1674 ईसवी में राजा की उपाधि लेकर और सिंहासन पर बैठकर शासन आरम्भ किया। राजा रायसिंह के समय से दिल्ली के वादशाह के यहाँ बीकानेर के राठौरों की मर्यादा वढ़ गयी थी। इसका कारण यह था कि बीकानेर से अनेक अवसरों पर वादशाह को सहायता मिली थी। अनूपसिंह स्वयं साहसी और वीर पुरुष था। मुगल बादशाह ने पाँच हजार अश्वारोही सेना का मनसव बनाकर और राजा की उपाधि देकर उसे वीजापुर तथा औरंगाबाद का शासक नियुक्त किया था। अनूपसिंह ने भी इसके बदले में कई मौकों पर बादशाह की सहायता की थी। इससे वादशाह और भी अधिक प्रसन्न हुआ था। 541
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