जिन दिनों में कावुल के अफगान दिल्ली के बादशाह के विद्रोही हो गये थे, वादशाह ने उन विद्रोहियों को दमन करने के लिए मारवाड़ के राजा को भेज दिया। उस समय अनूपसिंह भी बीकानेर को सेना लेकर बादशाह के आदेश से काबुल विद्रोह का दमन करने के लिए गया था। इस विद्रोह के शांत हो जाने के बाद भी बादशाह की तरफ से अनूपसिंह ने कई युद्ध किये। । अनूपसिंह की मृत्यु के सम्बन्ध में दो प्रकार के उल्लेख पाये जाते हैं। फरिश्ता ने अपने इतिहास में लिखा है कि राजा अनूपसिंह की मृत्यु दक्षिण में हुई थी, परन्तु राठौरों के इतिहास से जाहिर होता है कि अनूपसिंह दक्षिण के युद्ध में अपनी सेना लेकर गया था। वहाँ पर शिविर बनाने के स्थान पर बादशाह के प्रधान सेनापति के साथ उसका झगड़ा हो गया। इसलिए अप्रसन्न होकर वह दक्षिण से अपने राज्य में चला आया और उसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी। स्वरूपसिंह और सुजानसिंह नाम के दो लड़के अनूपसिंह के थे। अनूपसिंह की मृत्यु के बाद सम्वत् 1765 सन् 1709 ईसवी में स्वरूपसिंह सिंहासन पर बैठा। परन्तु उसने बहुत थोड़े दिनों तक शासन किया। राजा अनूपसिंह ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में बादशाह के साथ सभी सम्बन्ध तोड़ दिये थे। इसलिए वादशाह की तरफ से उसे जो ओडनी राज्य मिला था, वह वापस ले लिया गया। सिंहासन पर बैठने के वाद स्वरूपसिंह ने ओडनी राज्य पर अधिकार करने के लिए ओडनी राज्य पर आक्रमण किया और उसी युद्ध में वह मारा गया। उसका छोटा भाई सुजानसिंह उसके बाद सिंहासन पर बैठा। उसके शासन काल में कोई घटना नहीं हुई। सन् 1737 ईसवी में जोरावरसिंह बीकानेर के सिंहासन पर बैठा। जोरावरसिंह ने दस वर्ष तक राज्य किया। उसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद गजसिंह बीकानेर के सिंहासन पर बैठा। उसके शासन के साथ-साथ राज्य में घटनायें आरम्भ हुई। गजसिंह साहसी और पराक्रमी था। उसने गौरव के साथ इकतालीस वर्ष राज्य करके सभी प्रकार से बीकानेर की उन्नति की। राज्य की सीमा पर रहने वाले शक्तिशाली भाटी लोगों और भावलपुर के मुसलमान राजाओं के साथ युद्ध करके उसने अपनी बहादुरी का परिचय दिया। गजसिंह ने भाटी लोगों के राजासर, कालिया, रनियार, सतसर, बुन्नीपुर, मुतालाई और अनेक छोटे-बड़े नगरों को अधिकार में लेकर अपने राज्य में मिला लिया। इन्हीं दिनों में भावलपुर के राजा खाँ के साथ उसने युद्ध किया और उसके प्रसिद्ध दुर्ग अनूपगढ़ पर अधिकार कर लिया। दाऊद के पोतड़ा लोगों का विध्वंस उसने इसलिए किया कि जिससे वे कभी विद्रोह न कर सकें और इसी उद्देश्य से उसने अनूपगढ़ के पश्चिम की तरफ बसे हुए स्थानों का भी विनाश किया। राजा गजसिंह के इकसठ पुत्र पैदा हुए, उनमें विवाहित रानियों से केवल छ: थे जो इस प्रकार हैं:- 1. छत्रसिंह 2. राजसिंह 3. सुरतानसिंह 4.अजवसिंह 5. सूरतसिंह 6. श्यामसिंह 1. बीकानेर के एक ग्रंथ में लिखा है कि राजा अनूपसिंह की मृत्यु सम्वत् 1755 में दक्षिण में हुई। उसके साथ उसकी अठारह रानियाँ सती हुई थीं। 542
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