पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/५०२

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350 60 250 9 61 2 528 21 200 1500 200 4 30 4 250 1758 29 6. इमनसर का सामन्त खेतसिंह 7. जाँगल का सामन्त बेनीसिंह 8. बितानो का सामन्त भूमसिंह जोड़ 3611 9. मोजी परिहार के अधिकार की 10. नरपति की विदेशी सेना और खासपटागाँ 11. गंगासिंह के अधिकार में 12. दुर्जनसिंह के अधिकार में 600 13. अनेकासिंह 300 14. लाहौरीसिंह सिक्ख सामन्त 15. बुधसिंह 250 16. अफगान सामन्त सुलतानखाँ और अहमदखाँ के साथ जोड़ 5711 राजा सूरतसिंह ने इन सब सेनाओं को एकत्रित करके अपने राज्य के दीवान के लड़के जैतराव मेहता को प्रधान सेनापति बनाया और वह सन् 1800 जनवरी के महीने में भावलपुर राज्य पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ। सेनापति जैतराव अपनी राजधानी से चलकर कुनसर, पराजसर, केली और रानेर होकर अनोहागढ़ पहुँच गया और वहाँ से चलकर शिवगढ़ और भोजगढ़ को पार करके फूलरा में मुकाम किया।* हिन्दूसिंह नाम के एक भाटिया सरदार ने भोजगढ़ पहुँचकर उस पर अधिकार कर लिया और वहाँ के दुर्ग में पहुँचकर दुर्ग के अधिकारी मोहम्मद आसफ की सेना को पराजित किया और उसकी स्त्री को कैद करके उसने बीकानेर भेज दिया। उसके बाद पाँच हजार रुपये और चार हजार ऊँट लेकर उस स्त्री को छोड़ दिया गया। बीकानेर की सेना कई सप्ताह तक शिवगढ़, भोजगढ़ और फूलरा के दुर्गों को घेरे रही। इसके बाद विजयी होकर उस सेना ने वहाँ से एक लाख पच्चीस हजार रुपये, अनेक कीमती चीजें और नौ तोपें लेकर अधिकार में कर ली। भावलपुर राज्य की सीमा के निकटवर्ती स्थानों और नगरों पर आतंक पैदा करके बीकानेर की सेना सिन्धु नदी से तीन मील के फासले पर खैरपुर पहुँच गयी। भावलपुर राज्य के जो सामन्त वहाँ के राजा से असन्तुष्ट थे, वे भी जैतराव के साथ आकर मिल गये। भावलपुर के राजा भावलखाँ ने बीकानेर की सेना को आगे बढ़ता हुआ देखकर युद्ध की परिस्थिति पर विचार किया। उसने इस अवसर पर बुद्धिमानी से काम लिया और अनेक प्रकार के प्रलोभनों के द्वारा उसने बीकानेर की सेना के सहायकों को तोड़ने की कोशिश की। उसने सेनापति भोजगढ़ का पुराना नाम कुल्लूर था और यह मरुभूमि के प्राचीन नगरों में एक नगर था, जो जोहिया की तरह प्रसिद्ध था। 548