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पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/८७

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को उसकी रक्षा का प्रबंध करना पड़ता है और उसके वालिग हो जाने पर राणा अपना प्रबंध वापस ले लेता है। नावालिग सामन्त की रक्षा के लिए जो प्रवंध राणा को करना पड़ता है, वह कभी-कभी बुरे परिणाम लेकर सामने आता है। ऐसे अवसरों पर राणा उन लोगों को नाबालिग का संरक्षक बना देता है, जो लोग उसके निकटवर्ती सम्बंधी होते हैं। ऐसे लोगों. के संरक्षक बनने से मेवाड़ में कभी कल्याण होता हुआ नहीं देखा गया। प्रायः जाति और वंश के लोग या तो किसी ईर्ष्या के कारण अथवा अपने छिपे हुये किसी स्वार्थ के कारण नाबालिग सामन्त का हित साधन करने में सफल नहीं होते। ऐसे अवसरों पर यूरोप के राज्यों में भी यही होता था। यद्यपि ऐसे मौके पर किसी निकटवर्ती व्यक्ति को खोजना ही आवश्यक मालूम होता है । परन्तु उसका परिणाम कहीं पर भी अच्छा सावित नहीं हुआ। मेवाड़ राज्य में राणा ने ऐसे अवसरों पर जब कभी इस प्रकार की व्यवस्था की है तो उसके लिए वाद में उसे पश्चाताप करना पड़ा। इस दशा में जब कोई सामन्त नावलिग होता है तो उसका प्रबंध राणा को अपने हाथों में लेना पड़ता है। यद्यपि अपने नाबालिग बच्चे के लिये माता आम तौर पर स्वाभाविक रूप से संरक्षक मानी जाती है। कोई भी दूसरे अपने अलग से स्वार्थ रख सकते हैं। अपने पुत्र से भिन्न माता का कोई स्वार्थ नहीं हो सकता। इसलिए माता को नाबालिग बच्चे का संरक्षक मानना ही सर्वथा उचित होता है। इसलिये ऐसे अवसरों पर नावालिग की रक्षा का भार माता को सौंप देने से कभी किसी प्रकार की अवान्छनीय परिस्थिति नहीं उत्पन्न हो सकती। विवाह - प्रत्येक सामन्त वैवाहिक कार्यों के सम्बंध में अपने राजा के साथ परामर्श करता है। ऐसा करना राजा के प्रति उसकी शिष्टता और सद्भावना का परिचय देता है। उसके लिए यह कोई बंधन नहीं है लेकिन कर्त्तव्य पालन के नाम पर आवश्यकता है। राजा का इससे प्रभुत्व बढ़ता है और इस प्रकार की शिष्टता के प्रदर्शन से सामन्त की मर्यादा का विस्तार होता है । इस प्रकार के अवसरों के परामर्श पर राजा सामन्त के सम्मान में मूल्यवान वस्तुयें भेंट में देता है। कोई राजपूत अपने वंश की लड़की के साथ विवाह नहीं कर सकता। इसी प्रकार का नियम नार्मन लोगों में भी था । नार्मन लोग भी अपने वंश की लड़की के साथ विवाह नहीं करते थे। इसके साथ-साथ उन लोगों में शत्रु के साथ वैवाहिक सम्बंध जोड़ने का नियम न था। विवाह के इन नियमों का प्रचार सबसे पहले नार्मन लोगों में हुआ। सामन्त के भूस्वामित्व की समय सीमा राज्य की तरफ से जो लोग भूमि पाते हैं, जागीरदारी प्रथा में उनके लिए क्या नियम हैं और उनकी भूमि की व्यवस्था उस प्रथा में किस प्रकार होती है, उसको यहाँ पर स्पष्ट करना हमारा उद्देश्य है। प्राचीन काल की शासन-प्रणाली जागीरदारी प्रथा की थी और सर्वत्र एक से मौलिक सिद्धांतों को लेकर बहुत समय तक चलती रही। समय और परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन हुये और शासन के विभिन्न नामों से समय-समय पर उसे सम्बोधित किया गया। जिसे आज डेमोक्रेसी अथवा प्रजातंत्र शासन कहा जाता है, यह इसी सामन्त शासन प्रणाली का संशोधित और परिवर्तित रूप मेवाड़ राज्य में दो प्रकार के भूमि के अधिकारी राजपूत थे। इन दोनों में पहला, दूसरे को अपेक्षा संख्या में अधिक था। पहला है ग्राम्य ठाकुर अर्थात् स्वामी और दूसरा भूमिया । ग्राम्य सामन्त वह कहलाता है जो राजा के द्वारा लिखे पट्टे से भूमि का अधिकारी होता है 87