पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/९

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आडम्बर अधिक है। लेकिन एक चतुर अन्वेषक अपने गम्भीर मंथन से काम की सामग्री प्राप्त कर सकता है। इन ग्रन्थों में ब्राह्मणों ने अपनी प्रधानता जिस प्रकार समाज पर कायम कर रखी हैं, उसमें देशवासियों के अज्ञान के सिवा और कुछ नहीं है। प्राचीन काल में मिश्र की भी यही अवस्था थी। इन दोनों में राजाओं और धार्मिक नेताओं के बीच एक ऐसा समझौता काम करता था, जिससे अप्रकट रूप में देश में सर्व-साधारण को अज्ञान के अंधकार में रखकर सदा अधीनता में रखा जा सके।

भारतवर्ष में युद्ध सम्बन्धी जो काव्य ग्रन्थ हैं, वे इस देश के इतिहास की सामग्री देने में सहायता करते है । कवि मनुष्य जाति के प्राचीन इतिहासकार माने जाते हैं। साहित्य में इतिहास का एक अलग स्थान बनने के समय तक कवि सही घटनाओं को लिखने का काम करते रहे। भारतवर्ष में व्यास के समय से लेकर मेवाड़ के प्रसिद्ध इतिहास लेखक बेनीदास के समय तक सरस्वती देवी की पूजा होती रही। पश्चिमी भारत में अन्य लेखकों के साथ-साथ कवि इतिहास के प्रधान लेखक रहे हैं। लेकिन उनकी कविता की भाषा अजीब होती है और जब तक उनकी कविताओं का अर्थ न किया जाये अथवा कोई उनका अर्थ करने वाला नं हो तो वे कवितायें समझ में नहीं आती। उन कवियों में एक बात और भी है। उनमें अतिशयोक्ति अधिक रहती है और उनकी इस अतिशयोक्ति से इतिहास का सही अंश नष्ट हो जाता है। इस दशा में प्राचीन काल में जिन कवियों ने ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख अपने काव्यों में किया है, उनके ग्रन्थों से ऐतिहासिक सामग्री लेने का कार्य बड़ी सावधानी का होता है। अगर ऐसा न किया गया तो इतिहास, इतिहास न होकर कविताओं और कहानियों के रूप में रह जाता है।

प्राचीन काल में कवियों ने इतिहासकारों के स्थान की पूर्ति की थी। परन्तु उनमें कुछ त्रुटियाँ थीं। वे त्रुटियाँ अतिशयोक्ति तक ही सीमित न थी। उनमें खुशामद की मनोवृत्ति भी थी और कवि की प्रसन्नता एवम् अप्रसन्नता-दोनों ही इतिहास के लिए जरूरी नहीं है। इतिहासकार मित्र और शत्रु-दोनों के लिये एक-सा रहता है और अपने इस कार्य में वह जितना ही ईमानदार रहता है, उतना ही वह श्रेष्ठ इतिहासकार होता है। खुशामद से इतिहास की मर्यादा नष्ट हो जाती है ओर वही परिस्थिति उसकी अप्रसन्नता में पैदा होती है।

प्राचीन काल में राजा और नरेश अपनी प्रशंसा चाहते थे और इसके लिये वे कवियों को अपनी सम्पत्ति से खुश करते थे। कवि को भी अधिकांश अवसरों पर सम्पत्ति के सामने आत्म-समर्पण करना पड़ता था। यह मनोवृत्ति कवि और इतिहासकार के लिये अत्यन्त भयानक है। यद्यपि इस प्रकार का अपराध प्राचीन काल के सभी कवियों को नहीं लगाया जा सकता। उस समय के अनेक कवियों ने अपनी कविताओं में इतिहास की सही घटनाओं का उल्लेख