पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

के भेद-भाव मिटा दिये थे । राठौड़ और चौहान सामन्तों के वंश दिल्ली व अनहिलवाड़ा नगर से सम्बंध रखते हैं। उन वंशों की लड़कियां विवाहित होकर राणा के वंश में आती हैं। राणा वंश के सामन्त भी राणा का अनुकरण करके अपने लड़कों के विवाह उन्हीं राजपूत वंशों में करते हैं, जिनके साथ राणा के विवाह सम्बंध होते हैं। वैवाहिक सम्बंधों के कारण राजपूतों के कई वंशों में पारस्परिक स्नेह की वृद्धि हुई है। इन सम्बंधों के फलस्वरूप मेवाड़ पर आने वाली विपदाओं में दूसरे वंश के राजपूतों ने न केवल सहानुभूति प्रकट की है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उन लोगों ने सभी प्रकार के उत्सर्ग किये है। मेवाड़ की एकता और मित्रता बहुत दिनों तक शक्ति-सम्पन्न होकर रही । लेकिन समय का प्रहार होने पर छिन्न-भिन्न हो गयी और उस एकता के टुकड़े-टुकड़े होते ही आक्रमणकारी लोगों को अत्याचार करने और लूटने का अवसर मिला। संगठित मराठा. दलों ने मेवाड़ में क्या नहीं क्या ? दिल्ली के मुगल सम्राट की शक्तियाँ जब तक मजबूत बनी रही,मराठों के अत्याचार नहीं हुये और न ठनको मेवाड़ का विध्वंस करने का अवसर मिला। मेवाड़ राज्य का पतन और मुगलों की शक्तियों का विनाश लगभग एक साथ हुआ। उन्हीं दिनों में मेवाड़ पर संगठित जातियों के आक्रमण आरंभ हुये और उनके प्राचीन गौरव को बड़ी निर्दयता के साथ छिन्न-भिन्न करके राज्य की मर्यादा को मिट्टी में मिला दिया गया। राजपूतों के विभिन्न वंशों ने मेवाड़ राज्य की जागीरदारी प्रथा का आश्रय लिया और सामन्त होने के पश्चात् उन लोगों ने अपने वैवाहिक सम्बंध राणा वंश के साथ कायम किये, उन दिनों में राणा ने जिन विभिन्न जागीरों की स्वीकृतियाँ दी, उन पर हम नीचे प्रकाश डालने की चेष्टा करेंगे। काला पट्टा- यह पहले लिखा जा चुका है कि राणा रायमल और उदयसिंह के वंशजों ने जो प्रधान राजपूत शाखायें कायम की थीं, उनके वंशजों ने अन्यान्य राजपूतों की ठप शाखायें पैदा की और उन शाखाओं तथा उप शाखाओं में जो पैदा हुये, वे मेवाड़ के श्रेष्ठ सामन्तों और सरदारों में माने गये। चूडावत और शक्तावत राजपूतों की दो प्रधान शाखायें हैं । चूण्डावत दस और शक्तावत छह शाखाओं में विभाजित हैं। राजपूतों में प्रचलित प्रणाली के अनुसार वे अपने वंश वालों की लड़कियों के साथ विवाह करने के अधिकारी नहीं है । इन शाखाओं और उप-शाखाओं में जितने भी राजपूत विभाजित हैं, वे सभी सीसोदिया कुल के नाम से विख्यात हैं । इस कुल का लड़का इस कुल की लड़की के साथ विवाह नहीं कर सकता,यह निश्चित है । मेवाड़ की जागीरों पर जो प्रभाव सीसोदिया वंश के राजपूतों का है, वह राठौरों, परमारों और चौहानों का नहीं है, यद्यपि ये सभी मेवाड़ के सामन्त हैं और बहुत दिनों से इस राज्य की जागीरों के अधिकारी होते चले आये हैं। इनका प्रभाव निर्बल है, इसका कारण सीसोदिया वंश के सभी सामन्त राणा वंश के साथ सम्पर्क रखते हैं। इसीलिये उनके अधिकार श्रेष्ठ माने जाते हैं। सीसोदिया सामन्तों की जागीरें यद्यपि स्थायी पट्टों के अनुसार नहीं हैं, फिर भी उनका अधिकार स्थायी रूप से चला करता है । परमार, चौहान और राठौड़ सामन्तों के साथ ऐसा नहीं है । उनको यह कहने का अधिकार नहीं है कि जागीरों पर हमार स्वत्व स्थायी हो गया है । सीसोदिया सामन्तों के अतिरिक्त परमार, राठौड़ और चौहान आदि वंश के सामन्तों को जो पट्टा दिया जाता है, वह काला पट्टा के नाम से प्रसिद्ध है। जिनको इस प्रकार का पट्टा प्राप्त होता है, वे स्वयं कहा करते हैं कि हम काला पट्टा धारी हैं। 90