काले पट्टा का अर्थ यह है कि उसके अनुसार जो भूमि अथवा जागीर किसी सामन्त को दी गयी है, वह राणा के द्वारा किसी भी समय पर वापस ली जा सकती है । लेकिन यह परिस्थिति सीसोदिया सामन्तों की नहीं हैं। अन्य वंश वालों की अपेक्षा सीसोदिया वंशी सामन्तों को सुविधायें भी अधिक प्राप्त हैं। राणा भीमसिंह के समय मेवाड़ की अवस्था बहुत शोचनीय हो गयी थी। कितने ही सामन्तों ने पट्टे में मिली हुई जागीर के अतिरिक्त राज्य के स्थानों पर अधिकार कर लिया था। इस अराजकता को मिटाने के लिये आवश्यक समझा गया कि सभी सामन्तों को वुलाकर नये पट्टे दिये जायें और इन नवीन पट्टों पर राणा भीमसिंह के हस्ताक्षर हों। इसके पहले के सभी पट्टे रद्द कर दिये जाएं। इसके लिये राणा का प्रधान मंत्री चूण्डावतों के सरदार सलुम्बर के सामन्त के पास गया और उसने पट्टा दिखाने के लिये उससे प्रार्थना की। उसने राणा को निर्वल समझकर राज्य के अनेक अच्छे ग्रामों पर अधिकार कर रखा था। इसलिए प्रधान मंत्री की प्रार्थना को सुनकर उसने उत्तर दिया - “मेरा पट्टा राणा के महल की नींव में है।" राणा के प्रति उसके एक सामन्त का यह उत्तर कितने बड़े विद्रोह से भरा हुआ है, इसका सहज ही अनुमान किया जा सकता है। इसी प्रकार का उत्तर अर्लवारेन ने इसी प्रकार की परिस्थिति में इंगलैंड के एडवर्ड के प्रतिनिधि को देते हुए कहा था “मेरे पूर्वजों ने तलवार के वल से इस भूमि पर अधिकार किया था और मैं भी अपनी तलवार के बल से इस भूमि की रक्षा करूँगा।" ऊपर हमने जिस पट्टे का उल्लेख किया है, जागीरदारी प्रथा के पुराने विधान के साथ उसका संबंध है। अब नये नियमों के अनुसार अपने जीवन-भर के लिए सामन्त लोग जागीर का पट्टा पाते हैं। किसी भी विधान में दत्तक पुत्र का उत्तराधिकारी होना स्वीकार नहीं किया गया। लेकिन नये नियमों में सामन्त राणा का परामर्श लेकर यदि किसी बालक को गोद लेता है तो वह वालक भूमि अथवा जागीर का उत्तराधिकारी मान लिया जाता है। सामन्त के जीवन की कुछ ऐसी परिस्थितियाँ भी हैं, जिनके कारण उसकी जागीर पर राणा अधिकार कर सकता है। इसके लिए सामन्त का कोई अपराध होना चाहिए। अनुशासन भंग करना अथवा इस प्रकार के किसी भी अपराध में सामन्त की जागीर राणा के द्वारा वापस ली जा सकती है। राणा के परामर्श के अनुसार गोद लिए वालकों को उत्तराधिकारी मान लेने पर जव उनकी प्रार्थनायें राणा के सामने आती हैं तो उनके अभिषेक के समय सामन्त प्रणाली के साधारण नियम प्रयोग में लाये जाते हैं। उत्तराधिकारी को नजराना देना पड़ता है उसके पश्चात राणा उसका पट्टा स्वीकार करता है। कुछ परिस्थितियों में,जिनका ऊपर वर्णन किया गया है, राणा को अधिकार है कि वह किसी सामान्त को पदच्युत कर दे और उसके अधिकार की जागीर को उससे वापस ले ले। परन्तु इस अधिकार को प्रयोग में लाना राणा के लिए साधारण कार्य नहीं होता। उसके सामने भीषण विपदायें पैदा होती हैं और उसे भयानक संकटों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए अधिकार रखते हुए भी राणा ऐसा करने का सहज ही साहस नहीं करता सामन्त लोग दो प्रकार के मिलते हैं। कुछ तो राणा के वंशगत हैं और दूसरे राजपूतों के अन्य वंशों और उनकी शाखाओं से सम्बंध रखते हैं। किसी सामन्त को पदच्युत करने पर राणा का सार्वजनिक विरोध होता है और सभी सामन्त राणा के साथ विद्रोह करने के लिए तैयार हो जाते हैं। है 91
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