पृष्ठ:राजस्थान का इतिहास भाग 1.djvu/९२

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1 इस प्रकार के विघ्नों से बचने के लिए, जब कोई सामन्त अक्षम्य अपराध करता है तो राणा उसको पदच्युत करके उसी वंश के किसी राजपूत को उसकी जागीर का अधिकारी स्वीकार कर लेता है। भूमिया- मेवाड़ के इतिहास में लिखा गया है कि प्राचीन काल में राणा के वंशज भूमिया नाम से प्रसिद्ध थे और राज्य में वे विशेष रूप से सम्मान पाते थे। उनकी मर्यादा वादशाह बाबर और राणा संग्रामसिंह के समय तक बरावर कायम रही। उनकी मर्यादा में उसके समय तक कोई अंतर नहीं पड़ा । सीसोदिया राजपूतों के वंशज होने के कारण उनको यह मर्यादा प्राप्त हुई थी। उनकी इसी मर्यादा के कारण उनको भूमिया पद प्राप्त करने का अवसर मिला था। इस राज्य में जिनके ऊपर युद्ध का उत्तरदायित्व था उनमें यही भूमिया लोग प्रमुख माने जाते थे। उनका भूमिया नाम स्वयं उनकी श्रेष्ठता का परिचय देता था। मुस्लिम काल में राज्य के ये लोग जमींदार के नाम से पुकारे गये । यद्यपि जमींदार और भूमिया के शाब्दिक अर्थों में कोई अंतर नहीं है। फिर भी उन दिनों में लोग भूमिया पुद को अधिक महत्त्व देते थे। प्राचीन काल में भूमिया लोगों का ही राज्य में प्रभुत्व था और वे राज्य के अधिकांश भाग पर शासन करते थे। भूमिया लोग कमलमीर और माण्डलगढ के मैदानों में विशेष रूप से रहा करते थे। उनके नियंत्रण में कृषि कार्य होता था। कृषि कार्य भूमिया लोगों के पूर्वजों का कार्य था। इस व्यवसाय में रहकर भी उन्होंने कभी अपनी युद्ध कला को नहीं छोड़ा। वे सदा तलवार, भाला और धनुष बाण धारण करते थे। कृषि कार्य में रहकर भी वे स्वाभिमानी लड़ाकू लोगों में माने जाते थे। भूमिया लोगों के पूर्वजों और उनकी आज की संतानों के जीवन में बहुत अंतर पड़ गया है। पूर्वजों की अपेक्षा वे आज अधिक शिक्षित और सभ्य हो गए हैं। राजपूतों में जो लोग उनसे कम मर्यादा रखते थे, उनकी लड़कियों के साथ इनके विवाह सम्बन्ध होते थे और आज तक होते हैं। इन भूमिया लोगों में सभी प्रकार के लोग हैं। उनकी जागीरें बराबर नहीं है। कुछ लोग तो इतनी छोटी जागीर रखते हैं कि उनके अधिकार में एक ग्राम से अधिक नहीं आता। अपनी जागीर के लिए वे लोग राणा को बहुत कम कर देते हैं। आवश्यकता पड़ने पर राज्य की तरफ से सैनिक बनकर उनको युद्ध के लिये जाना पड़ता है। युद्ध के दिनों में उनके खाने-पीने का खर्च राणा की तरफ से किया जाता है। भूमिया होने के साथ-साथ ये लोग राज्य की प्रजा में गिने जाते हैं और युद्ध के दिनों में वे राज्य के सैनिक समझे जाते हैं। युद्ध के सभी अस्त्र-शस्त्र रखने के वे अधिकारी हैं। अपने साधारण जीवन में वे युद्ध के सभी अस्त्रों को प्रयोग में लाया करते हैं। मेवाड़ के इन भूमिया लोगों की बहुत सी बातें यूरोप के भूमि की अधिकारियों के साथ मिलती हैं। भूमिया राजपूत मेवाड़ के अश्वारोही सैनिक हैं। वे किसी शत्रु के आक्रमण करने पर बड़ी से बड़ी संख्या में युद्ध के लिए तैयार होकर राजधानी में आते हैं। मेवाड़ के भूमिया लोगों के साथ यूरोप के भूमि अधिकारियों की तुलना करते हुए इतिहासकार हालम ने लिखा है:

-जागीरदारी प्रथा में भूमि के ये अधिकारी लोग शांति के दिनों में अपने घर पर रहकर जीवन

व्यतीत करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उनको राज्य की सेना में पहुँच जाना पड़ता है। इससे वे इंकार नहीं कर सकते, परन्तु वे लोग अपने अधिकार की भूमि के बदले में राजा को किसी प्रकार का कर नही देते । भूमिया लोगों के साथ राज्य के जो नियम चलते हैं, वे सभी राज्यों में समान रूप से नहीं माने जाते । मेवाड़ में उसके उत्तराधिकारियों को स्वीकार किया जाता है, परन्तु कच्छ में ऐसा नहीं है। उनके स्वत्वों के 92