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अत्युक्ति।
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देखना चाहता हो, उस व्यक्तिको धोखा देने के लिये सँपेरेको भी वाध्य होना पड़ता है। वह साँप निकालता तो अपनी झोलीमेंसे ही है, लेकिन दिखलाता इस प्रकार है कि मानो वह दर्शकके दुपट्टेमेंसे ही निकला हो। किप्लिंगने साँप निकाला तो अपनी कल्पनाकी झोलीमेंसे ही, लेकिन उनकी निपुणताके कारण अँगरेजी पाठकोंने ठीक यही समझा कि एशियाके दुपट्टेमेंसे ही दलके दल साँप निकल रहे हैं।

लेकिन बाहरके वास्तव सत्यके लिये हम लोग इस प्रकार एकान्त लोलुप नहीं है। कल्पनाको कल्पना समझनेपर भी हमें उसमें आनन्द मिलता है। इसीलिये जब हम कहानी सुनने बैठते हैं तब स्वयं ही अपने आपको भुला सकते हैं। हमारे लिये लेखकको किसी प्रकारका छल नहीं करना पड़ता। उसे काल्पनिक सत्यको वास्तव सत्यकी दाढी मूंछ नहीं लगानी पड़ती। बल्कि हम लोग और भी उलटी तरफ जाते हैं। हम लोग वास्तव सत्यपर कल्पनाका रंग चढ़ाकर उसे अप्राकृतिक बना सकते हैं, इससे हम लोगोंको किसी प्रकारका दुख नहीं होता। हम लोग वास्तव सत्यको भी कल्पनाके साथ मिला देते हैं और युरोप कल्पनाको भी वास्तव सत्यके रूपमें खड़ा कर देता है तब छोड़ता है। अपने इस स्वभाव-दोपके कारण हम लोगोंकी बहुत कुछ हानि भी हुई है। और क्या अँगरेजोंके स्वभावसे उन लोगोंकी कोई हानि नहीं हुई? गुप्त झूठ क्या उन लोगोंके घर और बाहर विहार नहीं कर रहा है? उन लोगोंके यहाँ समाचारपत्रोंके समाचार गढ़े जाते हैं और यह बात सभी लोग जानते हैं कि उन लोगोंके व्यवसाय-मन्दिरोंमें और शेअर (Share) खरीदन-वेचनेके बाजारोंमें किस प्रकार सर्वनाशक झूठका व्यवहार होता है। हम लोग यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि विलायती विज्ञापनोंकी अत्युक्तियाँ और मिथ्या उक्तियाँ भिन्न भिन्न