अथवा शासन कार्यों आदिके सम्बन्धमें जिन लोगोंके साथ उन्हें काम पड़ता है उन लोगोंके साथ मेल-मिलाप करनेका जो कुछ भी प्रयत्न नहीं करते हैं, उनके इस गुणको साधारण लोग मन ही मन कुछ श्लाघाका विषय समझते हैं। उसका भाव यही है कि जिस प्रकार ढेंकी स्वर्ग पहुँच जानेपर भी ढेंकी ही बनी रहती है (अर्थात् उसे सब जगह धान कूटनेका ही काम करना पड़ता है,) उसी प्रकार अँगरेज सभी स्थानोंपर सदा अँगरेज ही रहते हैं। चाहे कुछ हो वे किसी प्रकार अँगरेज होनेके सिवा और कुछ हो ही नहीं सकते।
अँगरजोंमें मनोहारिताका जो यह अभाव है, वे लोग अपने अनुचरों और आश्रितोंके अंतरंग बनकर उनके मनका भाव जाननेकी ओर जो सदा पूरी उपेक्षा करते हैं, वे लोग समस्त संसारका अपने ही संस्कारोंके अनुसार जो विचार करते हैं वहीं अँगरेजोंके चरित्रमें छिद्र और अलक्ष्मीके प्रवेशका एक मार्ग है।
जब कहींसे शत्रुके आनेकी जरा भी संभावना होती है तब अँगरेज लोग इस छिद्रको बहुत ही यत्नपूर्वक बन्द करते हैं; जहाँ जहाँ जितने मार्ग होते हैं उन सभी मार्गोंपर वे पहरे बैठा देते हैं और आशंकाके अंकुरतकको पददलित करके छोड़ते हैं। परन्तु उनके स्वभावमें जो एक नैतिक विघ्न है उस विघ्नको वे सदा आश्रय देकर दुर्दम करते जा रहे हैं। कभी कभी वे स्वयं ही उसपर थोड़ा बहुत आक्षेप कर बैठते हैं परन्तु ममतावश वे उसे दूर किसी प्रकार नहीं कर सकते। यह बात ठीक वैसी ही है कि एक आदमी बूट पहनकर अपने हरे भरे खेतमें इस विचारसे चारों तरफ चलता है कि जिसमें पक्षी मेरी फसलमेंका एक दाना भी न खा सकें। उसके इस प्रकार बूट पहनकर तेजीके साथ चलनेसे पक्षी भाग तो अवश्य जाते हैं, परन्तु