पथ और पाथेय।
आरव्योपन्यासमें एक कहानी है कि एक मछुआ प्रतिदिन नदीमें जाल फेंकता था और उसमें मछलियाँ फँस जाती थीं। एक दिन मछलीकी जगह एक घड़ा उसके जालमें फँस आया। उसका ज्यों ही मुँह खोला गया त्यों ही उसमेंसे खम्भेके आकारका काला धूआँ निकला, जो शीघ्र ही एक विशालकाय दैत्यके रूपमें बदल गया ।
हमारे समाचारपत्र प्रतिदिन खबरें खींच लाते हैं। पर हमने कभी यह नहीं सोचा था कि कभी उनके जालमें कोई ऐसा घड़ा भी आ अटकेगा और उस घड़ेमेंसे इतनी बड़ी भयंकर बात बाहर निकलेगी।
बिलकुल अपने पड़ोसहीमें अचानक क्षण मात्रमें इतने बड़े रह- स्यका उद्घाटन होनेके कारण समस्त देशके लोगोंके अन्तःकरणमें जिस समय आन्दोलन उपस्थित होता है उस समय, उस सुदूरव्यापी चञ्चलताके समय वाक्य और कर्ममें सत्यकी रक्षा करना कठिन हो जाता है । जलमें जिस समय लहरें उठती रहती हैं उस समय उसमें अपनी परछाही आपसे आप विकृत हो जाती है और इसके लिये किसीको दोष नहीं दिया जा सकता । अत्यन्त भय और चिन्ताके समय हमारे विचारों और वाक्यों में स्वभावतः ही विकलता आ जाती है और यही वह समय है जब कि अविचलित और विकाररहित सत्य सबसे