पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
राजा और प्रजा।
१५२


लिक क्लेशकी प्रतिकारचेष्टामें देशके व्यापक हितको हानि पहुँचा देना उनके लिये असम्भव नहीं रह जाता।

इतिहासकी शिक्षाको जैसा चाहिए वैसा समझ लेना बड़ा कठिन काम है। सभी देशोंके इतिहासोंमें जिस समय कोई बड़ी घटना घटित होती है उसके कुछ ही पहले एक प्रबल आघात और आन्दोलनका अस्तित्व अवश्य पाया जाता है। राष्ट्र अथवा समाजपर असामञ्जस्यका भार बहुत दिनोंतक चुपचाप बढ़ता बढ़ता अधिक हो जाता है और तब वह अचानक एक दिन एक आघातसे विप्लवका रूप धारण कर लेता है। उस समय यदि देशमें अनुकूल उपकरण प्रस्तुत रहते हैं, यदि पहले हीसे उसके भाण्डारमें ज्ञान और शक्तिका सम्बल पूर्ण रूपसे संचित रहता है तो देश उस विप्लवके कठोर आघातका निवारण कर नए सामञ्ज- स्यके योगसे अपना नया जीवन निर्माण कर लेता है। देशका यह आभ्यन्तरिक प्राण सम्बल अन्तःपुरके भाण्डारमें प्रच्छन्न रूपसे सञ्चित होता है, इसलिये हम इसे देख नहीं सकते और इसीसे समझ बैठते हैं कि विप्लवहीके द्वारा देशने सफलता प्राप्त की है; विप्लव ही मंग- लका मूल कारण और प्रधान उपाय है।

इतिहासको ऊपर ऊपरसे देखकर यह भूल जाना ठीक न होगा कि जिस देशके मर्मस्थानमें सृष्टि करनेकी शक्ति क्षीण हो गई है, प्रलयके आघातका उससे कदापि निवारण न हो सकेगा। गढ़ने या जोड़नेकी प्रवृत्ति जिसमें सजीव रूपमें विद्यमान है, भंग करनेकी प्रवृ- त्तिका आधात उसके जीवन-धर्मको ही, उसकी सृजनी शक्तिको ही सचेष्ट और सचेतन करता है। इस प्रकार प्रलय सदा सृष्टिको नवीन बल देकर उत्तेजित करता है; इसीलिये उसका इतना गौरव है। नहीं तो निरा तोड़-फोड़ या विवेकहीन विप्लव किसी प्रकार कल्याणकर नहीं हो सकता।