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राजा और प्रजा।
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उन्होंने निश्चय किया कि पिताजी जो खेतमें गड़ा हुआ धन बतला गये हैं, उसे फावड़ेसे खोदकर हम एक ही बारमें जड़से उखाड़ लेंगे । इस बातके सीखनेमें कि खजानेका गड़ा धन उस खेतसे प्रतिवर्ष पैदा होनेवाला अन्न ही है उनका बहुतसा समय व्यर्थ नष्ट हो गया। हम लोग भी यदि जलदी इस बातको न समझ लेंगे कि कोई अद्भुत उपाय करके गड़ा खजाना हम केवल मनोराज्यहीमें प्रान कर सकते हैं, प्रत्यक्ष जगत्में और सब लोग उसको जिस प्रकार प्राप्त और भोग करते हैं, हमें भी यदि ठीक उसी रीतिसे उसे प्राप्त करना होगा, तो टोकरों और दुःखोंकी संख्या और मात्रा बढ़ती ही जायगी और इस विषयमें हम जितना ही अग्रसर होते जायेंगे, लौटनेका रास्ता भी उतना ही लम्बा और दुर्गम होता जायगा।

अधैर्य अथवा अज्ञानक कारण जब स्वाभाविक उपाय पर अश्रद्धा हो जाती है और कुछ असाधारण घटना घटित कर डालनेकी इच्छा अत्यन्त प्रबल हो उठती है उस समय धर्मबुद्धि नष्ट हो जाती है; उस समय उपकरण केवल उपकरण उपाय केवल उपाय समझ पड़ते हैं । उस समय छोटे छोटे बच्चोंतकको निर्दयतापूर्वक इस उन्मत्त इच्छाके आगे बलि कर देनेमें मनको आगा पीछा नहीं होता । महा- भारतके सोमक राजाकी तरह असामान्य उपाय द्वारा सिद्धि प्राप्त करनेके लोभमें हम अपने अनि सुकुमार छोटे बच्चे को भी यज्ञकी अग्निमें समर्पित कर बैठे हैं। इस विचारहीन निष्ठुरताका पाप चित्र- गुप्तकी दृष्टि नहीं बचा सका, उसका प्रायश्चित्त आरम्भ हो चुका है -बालकोंकी वेदनासे सारे देशका हृदय विदीर्ण हो रहा है। हम नहीं जानते कि अभी और कितना दुःख सहना होगा।

दुःख सह लेना उतना कठिन नहीं है, पर दुर्मतिको रोकना या दबा लेना अत्यंत दुष्कर कार्य है । अन्याय या अनाचारको एक बार