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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/१८२

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राजा और प्रजा।
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हो जायगा ! अनेक युगोंसे इस देशमें न जाने कितने विप्लव और कितने अत्याचार हुए और इस देशके सिंहद्वारपर न जाने कितने राज- प्रताप आए और चले गए, इन सब बातोंके बीचमेंसे भारतवर्षकी परिपूर्णता अभिव्यक्त होकर उठ रही है । आजके क्षुद्र दिनका जो क्षुद्र इतिहास उस पुराने बड़े इतिहासके साथ मिल रहा है, क्या कुछ दिनों बाद उस समग्र इतिहासमें यह क्षुद्र इतिहास कहीं दिख- लाई भी पड़ेगा ! हम भय न करेंगे, क्षुब्ध न होंगे, भारतवर्षकी जो परम महिमा कठोर दुःखराशिमेसे विश्वके सृजनानन्दको बह- नकर व्यक्त हुआ करती है-भक्त-साधकके प्रशान्त ध्यान-नेत्रसे हम उसकी अखंड मूर्तिके दर्शन करेंगे, चारों ओरके कोलाहल और चित्त-विक्षेपके समय भी साधनाको उस उच्च लक्ष्यकी ओर निरन्तर बढ़ाए चलेंग। विश्वास करेंगे कि इसी भारतवर्षमें युगयुगान्तरके मानचित्तोंकी आकांक्षा-धाराओंका मिलाप हुआ. है, यहाँ ही ज्ञानके साथ ज्ञानका मन्थन, जातिके साथ जातिका मिलन होगा। वैचित्र्य यहाँ अत्यन्त जटिल है, विच्छेद अत्यन्त प्रबल है, विपरीत वस्तुओंका समावेश अत्यन्त विरोधपूर्ण है। इतने बहुत्त्र, इतनी वेदना, इतने आघातको इतने दीर्घकाल तक बहन करके और कोई देश अब तक जीता न रह जाता । पर भारतमें एक अति बृहत् , अति महान् समन्वयका उद्देश्य ही इन सारे आत्यन्तिक विरोधोंको धारण किए हुए है, परस्परके आघात प्रतिघातमें किसीको नष्ट नहीं होने देता। ये सारे विविध, विचित्र उपकरण जो कालकालान्तर और देशदेशान्तरसे यहाँ ला रक्खे गए हैं, अपने निर्बल अँगूठों द्वारा उन्हें ठुकराकर फेंक देनेके प्रयत्नमें हमारा ही अँगूठा टूटेगा, वे अपनी जगहसे टससे मस भी नहीं होंगे। हम जानते हैं कि बाहरसे किए जानेवाले अन्याय और