आत्मीय समाज बराबर धीरे धीरे बढ़ता ही जाता है इसीलिये उनके
लिये यह काम बहुत ही सहज हो गया है कि जिस देशको उन
लोगोंने जीता है उस देशमें रहकर भी वे यथासंभव न रहनेवालोंके बरा-
बर हो जायें और जिस जातिका वे शासन करते हैं उस जातिके साथ
प्रेम न करके भी बराबर अपना काम करत रहें। जिस तरह लोग दिनभर
दफ्तरमें बैठकर काम करते और सन्ध्या समय घर जाकर आनन्दसे
भोजन करते हैं उसी प्रकार हजार कोस दूरसे समुद्रपार करके एक
सम्पूर्ण विदेशी राज्य यहाँ आता और अपना काम करके फिर समुद्र
पार करता हुआ अपने घर चला जाता है और वहाँ आनन्द करता
है। भला इतिहासमें कहीं ऐसा और भी कोई दृष्टान्त है ?
अँगरेजोंके लिये हम लोग यों ही विदेशी हैं । हम लोगोंका रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श अँगरेजोंको स्वभावतः ही अरुचिकर होता है। तिसपर बीचमें एक और बात पैदा हो जाती है । ऐंग्लो-इंडियन- समाज इस देशमें जितना ही प्राचीन होता जाता है उतना ही उनके कितने ही लोकव्यवहार और जनश्रुति क्रमशः बद्धमूल होती जाती हैं। यदि कोई अँगरेज अपनी स्वाभाविक उदारता और सहृदयताके कारण बाहरी बाधाओंको दूर करके हम लोगोंके अन्तरमें प्रवेश करनेके लिये मार्ग निकाल सकता है और हम लोगोंको अपने अन्तरमें आह्वान करनेके लिये द्वार खोल सकता है तो वह यहाँ आते ही अँगरेज- समाजके जालमें फँस जाता है। उस समय उसका निजका स्वाभा- विक संस्कार उसकी जातिके समाजके बहुतसे एकत्र संस्कारोंमें मिल जाता है और एक अलंध्य बाधाका स्वरूप धारण कर लेता है। पुराने विदेशी किसी नए विदेशीको हम लोगोंके पास नहीं आने देते और उसे अपने दुर्गम समाज-दुर्गमें बन्द कर रखते हैं।