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पृष्ठ:राजा और प्रजा.pdf/४२

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अँगरेज और भारतवासी।
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है। अँगरेजोंको यह जतला देना होता है कि हम भी तुम्हीं लोगोंकी तरह हैं । और जहाँ कोई उनसे भिन्न बात निकल आती है तो उसे चटपट वहीं दबा देनेकी इच्छा होती है । आदम और हौआ ज्ञानवृक्षका फल खानेसे पहले जिस सहल वेशमें घूमा करते थे वह बहुत ही शोभायुक्त और पवित्र था, लेकिन ज्ञानवृक्षका फल खानके बादसे लेकर जबतक इस पृथ्वीपर दरजीकी दूकान नहीं खुली थी तबतक इसमें सन्देह नहीं कि उन लोगोंका वेश आदि अश्लीलता- निवारिणी सभा निन्दनीय समझा जाता था। हम लोगोंके लिये भी यही सम्भव है कि नए आवरणमें हम लोगोंकी लज्जा दूर न होगी बल्कि और बढ़ जायगी। क्योंकि, अभीतक कपड़े सीनेका कोई ऐसा कारखाना नहीं खुला है जो सारे देशवासियोंके शरीर ढक सके। यदि हम इस प्रकार शरीर ढकना चाहेंगे तो एक तो ढके ही न जा सकेंगे और फिर इसके समान विडम्बनाकी बात और कोई हो नहीं सकती। जो लोग लोभमें पड़कर सभ्यतावृक्षका यह फल खा बैठे हैं उन लोगोंको बहुत ही परेशान होना पड़ता है। इन लोगोंको सिर्फ इसी लिये परदा टाँगकर सब काम करना पड़ता है कि जिसमें कोई अँगरेज यह न देख ले कि हम हाथसे खाते हैं या चौका लगाकर भोजन करने बैठते हैं। एटीकेट ( Ettiquete ) शास्त्रमें यदि जरासी भी त्रुटि हो जाय, अथवा अँगरेजी भाषा बोलनेमें जरासी भी भूल हो जाय, तो वे उसे पातकके समान समझते हैं और अपने सम्प्रदायमें यदि वे आपसमें एक दूस- रेके साहबी आदर्शमें कुछ भी कमी देखते हैं तो लजा और अवज्ञा अनुभव करते हैं । यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो नंगे रहनेकी अपेक्षा इस अधूरे कपड़े पहनने में ही और कपड़े पहननेकी निष्फल चेष्टामें ही वास्तविक अश्लीलता है——इसीमें यथार्थ आत्म-अवमानना है ।