पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/१०

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स्वयं ही उस अभागे राम का बल देखूँगा। सभासदो! आओ प्राचीर पर चढ़कर देखें कि वीर शिरोमणि वीरवाहन रणभूमि में किस भांति पड़ा है। वीरशय्या पर वीरपुत्र को देखकर नयनों को तृप्त करें।"

यह कहकर वह प्राचीर की ओर चल दिया। पीछे-पीछे सब सभासद और योद्धा नतमस्तक हो धीरे-धीरे उसके पीछे चले। स्थान-स्थान पर सुभट-सूरमा भारी-भारी शस्त्र लिए पहरे पर उपस्थित थे। रावण सभासदों सहित प्राचीर पर चढ़कर समरभूमि को देखने लगा। युद्धभूमि में मृत पड़े सुभटों का विनाश देखकर वह दुःख और क्षोभ से भर गया।

हाय! स्वर्णराजमन्दिरों के उन्नत यह रत्न-जटित चूड़ा इस समय महापुरी लंका के किरीट की भांति दीख रहे हैं। पुष्पवाटिकाओं में रानियों के कनक प्रमोद भवन सूर्य की सुनहरी धप में कैसे सुन्दर प्रतीत होते हैं! कमलों से परिपूर्ण सरोवरों के तट पर फलों से लदे हए नवीन वृक्ष बसन्ती पवन के झकोरे खाकर मदमाती तरुणियों की भांति झूम रहे हैं। हाट, चतुष्पद की दुकानें हीरे-मोतियों से भरी हुई कैसी सुहावनी दीख पड़ती है! मानो मानवती लंका को प्रसन्न करने के लिए उसके चरण तल में संसार ने अपनी सम्पदा चढ़ा दी है, किन्तु शोक, यही राक्षसपुरी जो कभी भोगों और सुखों का कामस्थल थी, आज श्मशान बनी हुई है।"

मत्री ने आगे बढ़ विनयावनत हो हाथ जोड़कर कहा, "पृथ्वीनाथ! दिन और रात्रि संसार के दो स्वाभाविक रूप हैं। स्वामी! सब दिन समान नहीं होते।"

"किन्तु शत्रु के कटक को तो देखो, मदमत्त प्रहरी इस प्रकार चौकन्ने घूम रहे हैं जो पर्वत पर सिंह। उप सिंधूनट की रजत बालुका पर बैरी राम की सेना इस भांति विखरी दीख रही है, जैसे आकाश में तारामंडल। वह देखो, पूर्व द्वार पर दुनिवार नील पहरा दे रहा है। वह दक्षिण द्वार पर सौ हाथियों के बल वाला अंगद इस भांति घूम रहा है, जैसे हेमन्त ऋतु के अन्त में केंचुलत्यक्त विषधर भुजंग त्रिशूल के समान जीभ लपलपाता फिरता है। उत्तर की ओर महाविजयी सुग्रीव और पच्छिम को और स्वय बैरी राम हैं, जिसकी चांदनी-रहित चन्द्रमा की भांति शोभा मलिन हो रही है। वायुपुत्र हनुमान और राक्षसकूल-कलंक विभीषण इसके साथ हैं। अरे, इन सबने मेरी स्वर्णलंका को इस भांति घेर रखा है, जैसे व्याध कोशल से जाल में व्याघ्र को घेर लेता है।"

"महाराज! समरभूमि के इस भीषण दृश्य को तो देखिए। मरे हुए हाथियों के पुंज किस भीषण रीति से निश्चल पड़े हैं! चंचल घोड़े गतिहीन हो गए हैं। अनगिनत रथों के छिन्न-भिन्न अंग-प्रत्यंग इधर