पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/१०६

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1 हैं । इस गड़बड़ी का कारण मात्र यही है कि इन तीन सूर्यवंशी शाखाओं को पुराणों में गुप्तकाल में एकत्र कर दिया गया है। वास्तव में ये तीन समकालीन पृथक् शाखाएं थीं और इनकी पृथक राजधानियां थीं। अब मैथिल सूर्यवंशी शाखा पर विचार कीजिए। रावी नदी के तट से च नकर मायव नामक राजर्षि अपने पुरोहित रहूगण की सलाह से राप्ती नदी के पूर्व मिथिला प्रांत में आकर बसे । उन्होंने जयन्त को राजधामी बनाया, परन्तु कुछ पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकु पुत्र निमि ने ऐसा किया। निमि के पुत्र मिथि थे। सम्भव है इन्हें ही मायव कहा गया हो और मिथिता प्रांत माथव या. मिथि के नाम पर बना हो। अथवा मिथि' संस्कृत का प्राकृत में माथव बन गया हों। विदेह कुल के तेरह नामों का पता नहीं लगता है। इन्हें यदि नहीं जोड़ा जाता है, तो दशरथ और सीरध्वज की समकालीनता की संगति नहीं बैठती है। निमि याज्ञिक थे । मिथि ने मिथिलापुरी बसाई । आमे चल- कर सीरध्वज ने सांकाश्य राज्य को जीता और अपने भाई कुशध्वज को वहां का राजा बनाया। कुशध्वज का सांकाश्य राज्य चार पीढ़ी तक चना । इस वंश में ब्रह्मज्ञानी खांडिक्य हुए, मितध्वज के पुत्र खांडिक्य से कृतध्वज के पुत्र केशिध्वज का प्रथम युद्ध हुआ, फिर ज्ञानचर्चा हुई। सीर- ध्वज जनक ही राम के श्वसुर थे। चौथी वैशाली शाखा। वैवस्वत मनु के पुत्र नाभागारिष्ट ने एक वैश्य स्त्री से विवाह किया, इससे वह क्षत्रि-वैश्य वंश कह नाया। नाभागारिष्ट कागी के उतर-पूरब बिहार प्रान्त में बस गए। ये अयोध्या के नाभाग (२८) से भिन्न हैं। इस वंश में करन्घम और मरुत बड़े प्रतापी हुए। मरुत को हिमालय में सोो की खान मिल गई। उन्होंने महायज्ञ करके महादान किया. पीछे अवशिष्ट स्वर्ण को वहीं गाड़ दिया, जिसे पाकर पौरव युधिष्ठिर ने यज्ञ किया। मरुत ने बृहस्पति के भाई सम्वर्त से यज्ञ कराया । इस वंश के नरेश विशाल ( २६) ने विशालपुरी बसाई जो वैशाली कहाई । जब हैहय तालजंघ ने काशी जीती, तब वैशाली में प्रमति राज्या- सीन थे, जो सम्भवत: अन्तिम थे। हैहयों ने उन्हें भी पराभूत किया था। पांचवीं शर्यात शाखा के संस्थापक शर्याति मनु के पुत्र थे। इन्होंने खम्भात की खाड़ी में अपना राज्य स्थापित किया, जो आनर्त कहाया। भृगुपुत्र च्यवन' शर्याति के दामाद थे, तथा पुरोहित भी। शर्याति का ऐन्द्र महाभिषेक हुआ था। शर्यानि वेदर्षि भी हए । शर्याति का पुत्र आनर्त और कन्या सुकन्या थी। सुकन्या च्यनन को व्याही गई और आनर्त के नाम पर देश का नाम आनर्त रखा गया। यह वंश आनर्त पर २४ या २५ पीढ़ियों 1 - - - - १०४