सगर शाखा—सगर (३९), राम के दायाद। दक्षिण कोसल राज्य—सुदास (३८) या मित्रसहकल्माषपाद (३९), राम के नाना और मामा, कौशल्या के पिता, भाई।
विदेह मैथिल राज्य मुख्य शाखा—सीरध्वज (३८), (कुशध्वजभाई) भानुमन्त (३९), राम के श्वसुर-साले।
मैथिल राज्य : सांकाश्य शाखा—धर्मध्वज (३९)।
वैशाली शाखा-राज्य—इस वंश के अंतिम राजा प्रमति (३५) थे। इन्हें सम्भवत: हैहय तालजंघ ने जय किया। इस समय वैशाली पर हैहय वंश का कोई प्रतिनिधि राज्य वर रहा था।
शर्याति शाखा-राज्य—यह राजवंश २४ या २५ पीढ़ी तक चलकर राक्षसों से परास्त हो हैहयों से मिल गया। इस समय वहां मधु यादव राजा थे।
सूर्यवंश की इन गद्दियों के अतिरिक्त उस काल में और भी अनेक राजवंश समृद्ध हुए थे, जिनमें चन्द्रवंश सबसे प्रमुख था। यह वंश मनु के दामाद बुध ने अपने पिता चन्द्र के नाम पर स्थापित किया था और इसकी मुख्य और आदि गद्दी प्रतिष्ठान 'झूसी-प्रयाग' थी।
पौरव चन्द्रवंश मुख्य राज्य—सार्वभौम (३९), ऋक्ष (३२) का छोटा भाई।
विदर्भ का द्विमीढ़ वंश राज्य—धृतिमन्त (४०)
उत्तर पांचाल वैदिक सुदास वंश—सोमक (३९), सुदास (वैदिक)।
दक्षिण पांचाल राजवंश—रुचिराश्व।
मगध शाखा : चन्द्रवंश—सुधन्वा (प्रथम)।
काशी शाखा—वत्स (ऋतुध्वज-कुवल्याश्व)।
कान्यकुब्ज शाखा।
यदुवंश-माथुर शाखा—मधु।
यदुवंशी हैहय का माहिष्मती वंश दक्षिण मालव में—दुर्जय। दुर्जय के पुत्र सुप्रतीक (४०) को प्रतर्दन और सगर ने पराजित कर इस हैहय-वंश को नष्ट कर दिया।
वैदर्भ की चेदि शाखा—सुबाहु (२८) अन्तिम नृप। आगे इस वंश का पता नहीं मिलता।
तुर्वश का मरुत्तवंश (उत्तरी बिहार)—मरुत्त का यह प्रतापी वंश था। मरुत्त महाप्रतापी प्रसिद्ध यज्ञ कर्ता। ये निःसन्तान हुए, इसलिए पौरव दुष्यन्त को गोद ले लिया, जिन्होंने शकुन्तला से भरत को जन्म दिया। जिनका अन्धे ऋषि दीर्घतमस ने इन्द्राभिषेक किया, परन्तु भरत के बाद
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