राम से कोई १४-१५ पीढ़ी पहले यह वंश समाप्त हो चुका था।
आनववंश उत्तर-पच्छिम शाखा—युधाजित् (३८), दशरथ की पत्नी कैकेई के भाई, भरत के मामा। यह राज्य इसके बाद शत्रुओ ने नष्ट कर दिया और भरतपुत्र पुष्कर और तक्ष ने उसे पाया। तक्ष ने तक्षशिला वसाकर राजधानी बनाई और पुष्कर ने पुष्करावती (पेशावर) को बसाकर राजधानी बनाई।
इस प्रकार राम के समकालीन राजाओं में हरिश्चन्द्र, सगर, सुदास, कल्माषपाद, सीरध्वज, कुशध्वज, भानुमन्त, धर्मध्वज, ये सूर्यवंशी तथा सार्वभौम, धृतिमन्त, सोमक, सुदास, दिवोदास (वैदिक, रुचिराइव, सुधन्वा, वता, मधु, दुर्जय, सुप्रतीक, लोमपाद, युधाजित अन्य राजा थे।
राक्षस-असुर राजाओं में और दैत्य वंश में—परमप्रतापी रावण, मारीच, सुबाहु थे।
ऋषियों में—वसिष्ठ, विश्वामित्र, वामदेव, ऋष्यशृंग, मित्र भुकाश्यप, सामकाश्व, देवराट्, मधुच्छन्दस, प्रतिदर्श, गृत्समद, अगस्त्य, अलर्क, भरद्वाज।
दशरथ और राम दोनों का सबसे प्रथम उल्लेख हमें ऋग्वेद में मिलता है; परन्तु वह अयोध्या से सम्बंधित नहीं है। इसके बाद राम का पूर्ण परि- चय वाल्मीकि रामायण से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मपुराण, महाभारत, विष्णुपुराण और हरिवंश तथा श्रीमद्भागवत में भी है। वाल्मीकि की रामकथा विख्यात है, जिसका सारांश यह है कि दशरथ को वृद्धावस्था तक एक पुत्री शांता के अतिरिक्त कोई सन्तान नहीं हुई। शांता को दशरथ के मित्र राजा रोमपाद (अंग नरेश) ने गोद लिया। उसका विवाह ऋष्यशृंग से हुआ। पीछे ऋष्यशृंग ने पुत्रेष्टियज्ञ कराया, जिसके फलस्वरूप राम (कौशल्या), लक्ष्मण-शत्रुघ्न (सुमित्रा), भरत (कैकेयी उत्पन हुए। किशोर वय में राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र अपने सिद्धाश्रम में ले गए, जहां उन्होंने राम-लक्ष्मण को शस्त्रास्त्र की शिक्षा दी तथा वहीं इन्होंने ताडिका राक्षसी और सुबाहु को मारा और मारीच को परास्त किया। तदनन्तर मिथिला जा जनक सीरध्वज के स्वयंवर में धनुष भंग कर सीता को विवाहा, साथ ही सीरध्वज की भतीजियों से तीनों कुमारों के ब्याह हुए। यहीं राम का हैहयवंश-विध्वंसकारी परशुराम से
साक्षात हुआ। राम सपत्नीक कुछ दिन अयोध्या रहे और कुछ दिन मिथिला रहे। पीछे जब भरत-शत्रुघ्न ननिहाल गये हुए थे, दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करना चाहा, जिसपर विमाता कैकेयी ने मन्थरा दासी के कुपरामर्श से पूर्वदत्त वरों के आधार पर १४ वर्ष के लिए राम-वनवास
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