पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/१११

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जाएंगे। ठीक है न सूत ?" "अब तो आ ही पहुंचे।" "वह सामने कौन आ रहा है ? रथ रोक दो।" सामने एक भट आ रहा था। रथ के समीप आकर उसने भरत का अभिवादन करके कहा, "कुमार की जय हो।" भरत ने उससे पूछा, "शत्रुघ्न कहां हैं, क्या पीछे आ रहे हैं ?" "हां, कुमार ! सब आ रहे हैं, पर पुरोहित जी ने कहलाया है कि "क्या कहलाया है ?" "कृत्तिका की एक घड़ी रह गई है, इसके पीछे रोहिणी नक्षत्र लगता है। आप उसी समय अयोध्या में प्रवेश करें।" अच्छी बात है, मैं बड़ों की बात कभी नहीं टालता। सूत ! घोड़ों को खोल दो, मैं इस मन्दिर में थोड़ा विश्राम कर लूंगा। देवदर्शन भी हो जाएंगे। "अच्छा कुमार !" कहकर सूत ने रथ के घोड़े खोल दिए। भरत उतरकर मन्दिरों की ओर बढ़े। मन्दिरों की शोभा देख कर वह कहने लगे, "वाह, यह तो झण्डियों और बन्दनवारों से भली भांति सजाया हुआ है। भीतों पर चन्दन की छाप लगी हैं। द्वारों पर नागकेसर और मालती की मालाएं लटक रही हैं। क्या आज यहां कोई उत्सव है ? या प्रतिदिन ऐसा ही रहता है ? पर यह किस देवता का मन्दिर है ? भीतर चलकर देखू । वाह, क्या कारीगरी की है ! कैसी मूर्तियां बनाई हैं जो आदमी-सी दीख पड़ती हैं ! पर ये चार मूर्तियां क्यों हैं ? किसी से पूछना चाहिए।" पुजारी भोजन करने गए थे । भोजन करके लौट ही रहे थे कि मंदिर में किसी व्यक्ति को देखकर सोचने लगे, 'अभी तो मैं पूजा करके भोजन करने गया था, इतने में ही यह कौन आ गया ?" भरत ने पुजारी को देख- कर कहा, ' अभिवादन करता हूं।" पुजारी ने कहा, "नहीं-नहीं, अभिवादन मत कीजिए।" भरत ने आश्चर्य से कहा, "क्यों, किसलिए?" "आपने कदाचित मुझे ब्राह्मण समझा है, यह तो क्षत्रियो की मूर्तियां "क्षत्रियों की ? किन क्षत्रियों की?" "रघुवंशियों की।" "वाह, तब तो यह अयोध्या के राजा होंगे?" "आप तो रघुवंशियों की भांति बोल रहे हैं। आप कहीं कैकेयी के १०६