पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/११३

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( ! भरत स्वस्थ हुए तो बोले, "ओह, आप हैं, माताएं कैसी हैं ?" रानी ने कहा, "पुन ! हम जैसी हैं, अपनी आंखों से देख लो।" सुमन्त ने उन्हें धैर्य बंधाते हुए कहा, "महारानी ! आप धीरज धरिए।" भरत ने उठने की चेष्टा करते हुए कहा, "आप सुमन्त ही हैं न ?" "हां, कुमार ! मैं ही अभागा हूं। मुझे तो महाराज के साथ ही जाना था; पर 'हाय, आर्य ! आप मुझे यह तो बताइए, बड़ी मां कौन-सी हैं, जिससे मैं उन्हें अभिवादन तो कर लूं ।" सुमन्त ने इंगित करके बताया, "यह देवी कौशल्या हैं ।" भरत ने प्रणाम करके कहा, "माता ! यह निरपराध अभिवादन करता है।" कौशल्या ने आशीर्वाद दिया, "पुत्र ! आयुष्मान हो !" सुमन्त ने दूसरी ओर इंगित करके बताया, “यह सुमित्रा देवी हैं।" भरत ने उन्हें भी प्रणाम करके कहा, मां ! लक्ष्मण से ठगाया हुआ, मैं अभिवादन करता हूं।" सुमित्रा ने आशीर्वाद दिया. · पुत्र ! आयु बढ़े ! यश बढ़े !" भरत ने सुमन्त से पूछा, "वे कौन हैं आर्य ?" "आपकी मां कैकेयी हैं।' हाय-हाय, माता ! तुम मेरी माताओं में नहीं सजती हो।" कैकेयी ने विषाद-भरी वाणी से पूछा, “पुत्र ! मैंने क्या किया ?" 'क्या किया कहती हो ? क्या नहीं किया कहो। अरे, हमें अपवाद, भाइयों को वनवान, महाराज को मृत्यु और सारी अयोध्या को क्रन्दन आग्ने दिया। लक्ष्मण को वन के मृग का साथी बनाया, पुत्रों और माताओं को शोक के समुद्र में डुबोया, सती सीता को वन-वन की धूल फंकायी, अब कहती हो, क्या किया है ?" कौशल्या ने बाधा देकर कहा. "सुपुत्र ! तुम तो सब शिष्टाचार जानते हो, माता का अभिवादन नहीं किया।" भरत ने दुःख-भरे स्वर में कहा, "आप ही मेरी मां हैं, आपका अभि- वादन कर चुका।" "नहीं, पुत्र ! तुम इन्हीं की कोख से उत्पन्न हुए हो।" "हुआ होऊंगा। इन्होंने पुत्रों को पराया बना दिया है। अब भरत 'पुकारकर कहता है, यह माता उसकी माता नहीं हैं।" कैकेयी ने विह्वल होकर कहा, "पुत्र ! मैंने तो महाराज की बात " ( - ! (4