पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/११४

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( I. था?" रखने के लिए यह काम किया था।" कौन काम ?" मेरी इच्छा थी, मेरा पुत्र राजा हो।" "राम क्या आपके पुत्र नहीं थे ? क्या वह मेरे तिा के पुत्र नहीं थे ? क्या वह सबसे बड़े होने के कारण राज्य के अधिकारी नही थे ? क्या वह हम सबको प्यार नहीं करते थे ?क्या सब लोग उन्हें प्यार नहीं करते थे?" "पुत्र ! मुझे वर मांगने का अधिकार था।' वाह, अधिकार वाले का अधिकार छीन कर उन्हें भाई और स्त्री के साथ चीवर पहनाकर आपने वन में भिजवा दिया, यही आ का अधिकार पुत्र ! मैंने अन्याय नहीं किया। आपको जो अपवाद ही भाता था, तो उसमें मुझे क्यों घाटा ? आपकी राजपाट की प्याम राजा नहीं इझा म के । क्या राम के राजा बनने से आप राजमाता नहीं कहा कती थीं ? अरे, आ ने राज के लालच में फंसकर सभी को दु:ख नहीं दिया ? ीता को चीवर 'हने, नंगे व वन जाते देखकर भी जो आ की छाती नहीं फटी, तो कहना होगा कि आप पत्थर की बनी हैं !" कैकेयी पुत्र की बात सुनकर रोने लगी। इसी समय राजपुरोहित तथा मंत्रीगण प्रमुख जनों को साथ लेकर वहां आ पहुंचे। सुमन्त ने कहा, कुमार ! ये मन्त्री, पुरोहित और नगरवासी राज- तिलक की सामग्री लेकर आए हैं। आप तिलक कराएं, क्योंकि बिना राजा के राज नहीं चल सकता। भरत ने उत्तर दिया, वे सब मेरे साथ चलें।" "आप कहां जाना चाहते हैं ?" "वहीं, जहां राम और लक्ष्मण हैं । जहां राम. वहीं अयोध्या। जहां राम नहीं, वहां अयोध्या नहीं। सब लोग चलिए।" यह सुनकर सब लोग भरत की प्रशंसा करने लगे और भरत के साथ वन की ओर चले । राम का आश्रम निकट आने पर भरत ने सुमन्त से कहा, “धर्मात्मा महाराज के स्वर्ग जाने पर नगर निवाड़ियों के आंसुओं के पीछे-पीछे महात्मा राम को माने हा हूं।" "धन्य कुमार ! आप वही कर रहे हैं, जो आको करना चाहिए।" 'अब और कितनी दूर है आर्य । राम अब कितनी दूर हैं. जो अयोध्या के सच्चे राजा हैं, जिन्हें देखने से पुण्य होता है, जो सत्यव्रती हैं, जिन्होंने मेरी मां का मनचीता करने के लिए राज्य को ठीकरे की भांति ठुकरा दिया। मैं उन्हें शीघ्र देखना चाहता हूं, वे मेरे देवता हैं। ११२ 11 , । "