पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/१९

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  "उमा! तुम काम को देवेन्द्र के पास भेजकर उन्हें कहलाओ कि माया देवी के निकेतन में तुरन्त जाए। माया के ही प्रसाद से वीर लक्ष्मण मेघनाद का वध कर सकेगा।"

यह सुन अम्बिका ने मदन को आज्ञा दी, "हे, अनंग! तुम तुरन्त देवराज को योगेन्द्र का सन्देश दो।"

मदन 'जो आज्ञा' कहकर वायु वेग से वहां से चल दिया और इन्द्र को योगेन्द्र का सन्देश दिया। महामाया अपने शक्तीश्वरी मणिमहल में नीलमणि के आसन पर बैठी हुई थीं। उनके शरीर से सूर्य के समान तेज निकल रहा था। वहीं पहुचकर इन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और कहा, "देवी महामाया! मैं महेश के आदेश से आपकी शरण आया हूं।"

"देवाधिदेव की क्या आज्ञा है?"

"देवी! मुझ दास को बताइए कि कल सुमित्रानन्दन दशाननपुत्र को किस कौशल से जीत सकेंगे? महेश्वर ने कहा है कि आपके ही प्रसाद से सौमित्र अजेय मेघनाद का वध कर सकेंगे।"

माया कुछ सोच में पड़ गईं, फिर कुछ अस्त्रों को देती हुई बोलीं, दानवराज तारकासुर ने तुम्हें पराजित करके देवगण को अति त्रास दिया था, तब कुमार कार्तिकेय को वृषभध्वज ने रुद्र तेज से ओत-प्रोत अस्त्र दिए थे, जिनसे उसने उस असुर का संहार किया था। यही वे अस्त्र हैं। यह अभेद्य ढाल है और इस खड्ग में स्वयं यमराज' का वास है। यह अक्षय तरकश है, इसके बाण महाविषधर कालसर्प के समान हैं और यह वह अमोघ धनुष है।"

इन्द्र ने हंसकर कहा, "मुझ दास का रत्नमय धनुष तो इसके सामने अति तुच्छ है। यह श्रेष्ठ ढाल तो सूर्य की भांति नेत्रों को चकाचौंध कर रही है, यह कृपाण भी अग्निशिखा की भांति महा तेजस्कर है। ऐसा तरकश भी अन्य नहीं है।"

"देवराज! निश्चय इन्हीं अस्त्रों से मेघनाद की मृत्यु होगी; परन्तु त्रिभुवन में ऐसा कोई नहीं है, जो न्याययुद्ध में मेघनाद का वध कर सके। तुम इन अस्त्रों को लक्ष्मण के पास भेज दो। कल मैं स्वयं लंकापुरी जाकर लक्ष्मण की संग्राम में रक्षा करूंगी। हे, बली सहस्राक्ष! कल जब उषा के आगमन से फूल खिलेंगे और पूर्व दिशा उज्ज्वल होगी, उससे प्रथम ही वीरेन्द्र लक्ष्मण तुम्हारे चिरशत्रु को मारकर तुम्हें त्रासहीन करेगा और लंका का सौभाग्य-सूर्य अस्त हो जाएगा। अब तुम सुरपुर को जाओ।"

इन्द्र वन्दना कर और अस्त्र ले वहां से चल दिए। अपनी पुरी में आकर इन्द्र ने चित्ररथ को उन अस्त्रों को देकर कहा, "गन्धर्वराज! तुम इन

राज्याभिषेक—२
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