पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/४५

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राम ने स्थिर होकर कहा, "तब मित्र! शीघ्र ही सब सेनानायकों को यहां बुला लो। यह दास देवाश्रित है। देव ही इनकी रक्षा करेंगे।" विभीषण ने जोर से शृगीनाद किया, जिसे सुनकर अंगद, नल, नील, हनुमान, जाम्बवन्त, रक्ताक्ष, सुग्रीव आदि सब नेता वहां आकर एकत्रित हो गए।

राम बोले, "वीरगण! आज राक्षसपति रावण पुत्र शोक से विह्वल हो समरसाज सज रहा है। तुम सब त्रिभुवनजयी शूर हो। शीघ्र सजकर इस घोर विपत्ति में राम की रक्षा करो। अब लंका एक रावण ही रथी वचा है। तुम्हारे ही बाहुबल पर मैंने समुद्र को बांधा। शम्भुमम पराक्रमी कुम्भकर्ण का वध किया। अजेय मेघनाद मारा गया। मित्रो! रघुकुलवधू रावण के कारागार में बन्द है, उसका उद्धार कर मेरे कुल और मान की रक्षा करो।"

यह सुन सुग्रीव ने कहा, "हे, शूर! आपके प्रसाद से मैं राजसुख भोग रहा हूं। मैं आपके चरणों में यह प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं रावण को मारूंगा या स्वयं मरूंगा। राक्षसों को सजने दो। मेरे वानर सैन्य में एक भी ऐसा नहीं, जो यम से भी डरे। हम निर्भय जूझेंगे।"

सुग्रीव के यह वचन सुनकर सब सैन्य गरज उठा, जिससे कनकलंका हिलने लगी। इसी समय देव सैन्य सहित वज्रमणि इन्द्र ऐरावत पर आरूढ़ वहां प्रकट हुए। उनके आते ही स्वर्गीय वाद्य और संगीत से दिशाएं भर गई। राम ने इन्द्र को साष्टांग प्रणाम करके कहा, देवपति! इस दास को पूर्व पुरुषों के और पूर्व जन्म के पुण्य प्रताप से ही इस विपत्ति में आपका पदाश्रय प्राप्त हुआ है।"

इन्द्र बोले, "हे रघुमणि! तुम देवप्रिय हो। आओ, मेरे इस रथ पर चढ़कर गवण से युद्ध करो।"

राम इन्द्र के रथ पर आरूढ़ हो गए। जुझाऊ बाजे बजते ही समस्त सैन्य में अपार शौर्य व्याप्त हो गया। वानर सैन्य व्यूहबद्ध हो युद्धभुमि की ओर चलने लगी।

उधर रावण के राजमहल के प्रांगण में भी युद्ध की तैयारियां हो रही थीं। रावण रणसाज सजकर शस्त्र बद्ध उन्मत्त सिंह की भांति खड़ा था। इधर-उधर सेनापति वीरभाव से खड़े अगणित सैन्य को व्यूहबद्ध कर रहे थे। कुछ सैन्य युद्धक्षेत्र में जा भी चुका था, रणवाद्य बज रहे थे। वजा आकाश में उड़ रही थी। रावण को युद्धक्षेत्र में जाने को उद्यत देख मन्दोदरी सखियों सहित आ उसके पैरों में गिर पड़ी।

रावण ने मन्दोदरी को उठाकर कहा, "प्रिये! धर्य धारण करो!

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