पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/७४

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"क्या, मैं ? नहीं तो? अब, उतरिए। महात्मा वाल्मीकि का आश्रम आ गया।" क्या सच ?.अहा, ऋषि के दर्शन करके आज आंखें तृप्त होंगी।" "हां, भाभी !" "उधर एकटक तुम क्या देख रहे हो ? देखो, गंगा कलकल करती बह रही है।" "हां, भाभी !" "और ऋषियों की कुटियों से होम का धुआं कैसा उठ रहा है ! ब्रह्म- चारी वेदपाठ कर रहे हैं। उनकी ध्वनि कैसी प्यारी लग रही है !" "हां, भाभी !" "मैं आज गंगा में खूब विहार करूंगी। सुन रहे हो न' लक्ष्मण ! "हां, भाभी !" "अरे, तुम किस सोच में खड़े हो लक्ष्मण ! आओ, इस पत्थर पर थोड़ा बैठकर आराम कर लें।" भाभी ! अब मैं जाऊंगा।" जाओगे ?.कहां जाओगे ?" "अयोध्या को।" अयोध्या को?" "हां, भाभी !" "वाह, देवर जी ! आये देर न हुई कि अभी जाओगे। मैं तो आज दिन-भर वन में विहार करूंगी। वाह, भला वन का यह सौन्दर्य महलों में 4 कहां?" 14 "यहां आपका मन लग जाएगा भाभी ! !" "मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, पर ऐं, यह दाहिनी आंख क्यों फड़क रही है ?" "भाभी ! महात्मा वाल्मीकि के आश्रम की सीधी राह यह है।" "देख तो रही हूं, परन्तु हम वहां गंगा स्नान करके चलेंगे।" "तो भाभी ! मुझे आज्ञा दीजिए।" "कैसे अच्छे फूल खिले हैं ! कैसी भीनी महक फैल रही है, देवर जी !" "हां, भाभी!" "हम महाराज के लिए बहुत-से फूल ले चलेंगे।" "भाभी ! अब मैं जाऊंगा।" "कहां, देवर जी !" 6 44 ७२