"अयोध्या को।"
"अभी हम नहीं चलेंगे।"
"पर मैं जाऊंगा, भाभी।"
"और मैं?"
"आप यहीं रहेंगी।"
"मैं?"
"हां, भाभी!"
"अकेली?"
"महात्मा वाल्मीकि का आश्रम तो पास ही है।"
"तुम्हारा अभिप्राय क्या है?"
"महाराज की आज्ञा है।"
"क्या आज्ञा है?"
"कैसे कहूं, भाभी!"
"कहो लक्ष्मण! मैं आज्ञा देती हूं।"
"महाराज की यही आज्ञा है कि देवी सीता को वन में महात्मा वाल्मीकि के आश्रम के पास छोड़ आओ।"
"छोड़ आओ?"
"हां, भाभी!"
"किसलिए?"
"मैं नहीं जानता।"
"महाराज ने क्या दासी त्याग दिया?"
"मैं नहीं जानता?"
"तो तुम मुझे इस वन में अकेली छोड़कर चले जाओगे?"
"महाराज की यही आज्ञा है।"
"अकेली वन में छोड़ जाने की? मुझ गर्भिणी को?"
"देवी! विपत् में धैर्य ही रक्षा करता है।"
"अयोध्या के वे राजमहल, आर्यपुत्र की वे प्यारी बातें, इतनी जल्दी स्वप्न हो जाएंगी?"
"भाभी! मेरा हृदय फटा जा रहा है।"
"रोते हो लक्ष्मण! छि:!"
"भाभी!"
सीता ने रुष्ट और उत्तेजित होकर कहा, "जाओ तुम अयोध्या को आर्यपुत्र से कहनाॱॱॱ।"
"क्या?"
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