पृष्ठ:राज्याभिषेक.djvu/९८

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" 6 आपकी दया से सब कुशल है।" "सुना है राजन् तुम अश्वमेध यज्ञ कर रहे हो?" "हां, भगवन् ! मैं आपको निमन्त्रण देने आया हूं। बहत अच्छी बात है। हां, महाराज ! इस यन में राजा की रानी कौन है ?" । सीता की सोने की मूर्ति ।" क्या कहा ?" सोने की सीता।" "सच ?" "सच।" गया।" 60 ( ( "धन्य हो रामभद्र !" "गुरुदेव ! मैं पत्नीद्रोही महापापी हूं।" लव-कुश ने आकर ऋषि से कहा, "गुरुदेव ! हमसे अपराध हो "कैसा अपराध पुत्रो?" "हमसे इन पूज्य अतिथियों का अपमान होण्या।" "कैसा अपमान बच्चो !" "हमने अनजाने अश्वमेध का घोड़ा पकड़ लिया और कुमार चन्द्रकेतु से युद्ध कर बैठे।" "बच्चो ! मैंने तुम्हारे वे अपराध क्षमा कर दिए। ऋषिवर ! ये दोनों कुमार किस कुल के हैं ? इन्हें देखकर तो हृदय उछलता है।" "महाराज राम ! ये तुम्हारे ही समान उच्चकुल के हैं।" राम ने उत्तेजित होकर कहा, “वया कहा गुरुदेव !" 'शान्त हो भद्र ! ये दोनों तुम्हारी ही सन्तान हैं। पुत्र लव-कुश ! अपने प्रतापी पिता को प्रणाम करो।" "अरे, मेरे पुत्र ! आओ बेटो ! छाती से लग जाओ। हाय रे राज- धर्म ! सबका अपनी सन्तान और बच्चों पर अधिकार होता है, केवल राजा का नहीं।" "तो राम ! तुमने अपने पुत्रों को तो ग्रहण किया न ?" "हां, गुरुदेव !" "और सीता को?" "सीता, सीता, भगवती सीता, हाय !" "राम ! तुम्हें संकोच क्या है ?" "ऋषिवर ! जो कारण तब था, वही तो अब भी है।" (