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क्रूसो की बिमारी

पच्चीसवीं जून--आज बड़े वेग से ज्वर चढ़ आया। पहले खूब जाड़ा लगा, इसके बाद दाह हुआ, और अन्त में पसीना आया। सात घंटे तक ज्वर रहा।

छब्बीसवीं जून--आज तबीयत कुछ अच्छी थी, पर कमज़ोरी बहुत थी। घर में कुछ खाने को न था, क्या करता ? बन्दूक लेकर बाहर निकला। एक बकरी को मार कर बड़े कष्ट से उसे उठा कर घर लाया। थोड़ा सा मांस भून कर खाया। इस समय यदि मांस का यूष बना कर पीता तो अच्छा होता; परन्तु मेरे पास शोरबा बनाने के लिए कोई बर्तन न था, कैसे राँधता?

२७ जून--आज फिर खूब जोर से बुखार हो आया। दिन भर बिछौने पर भूखा पड़ा रहा। प्यास से छाती फटी जाती थी किन्तु उस समय इतनी शक्ति न थी कि उठ कर पीने के लिए पानी ले सकूँ। मैं ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। मेरा दिमाग खाली मालूम होता था। जब न भी ख़ाली जान पड़ता था तब भी मैं ठीक न कर सकता था कि क्या कह कर ईश्वर का भजन करूँ। मैं सिर्फ़ बार बार यही कहने लगा, "प्रभो, एक बार मेरी ओर देखो, मुझ पर दया करो। मेरी रक्षा करो।" दो तीन घंटे बाद ज्वर का वेग कुछ कम पड़ने पर मैं सो गया। रात ज़्यादा बीतने पर नींद टूटी।

नींद टूटने पर मैंने अपने को बहुत स्वस्थ पाया। किन्तु कमजोरी बहुत थी। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। घर में पानी न था। प्यास को रोक कर फिर सोने की चेष्टा करते करते कुछ देर में सो रहा। मैंने सपना देखा कि मैं अपने घेरे के बाहर भूकम्प के दिन जहाँ बैठा था वहीं बैठा