पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८४
राबिन्सन क्रूसो।


उसे मैं भग्न जहाज के लूटने ही में लगाता था। लकड़ी का तख़्ता, लोहा, सीसा आदि जो कुछ पाता था ले आता था।

सेलहवीं जून--मुझे समुद्र के किनारे एक कछुआ मिला।

सत्तरहवीं जून--मैंने कछुए को पकाया, उसके पेट में ६० अंडे थे। जब से यहाँ आया तब से लगातार बकरों और चिड़ियों का मांस खाते खाते जी ऊब गया था। आज कछुए का मांस बड़ा स्वादिष्ट जान पड़ा। मानो ऐसा स्वादिष्ट पदार्थ आज तक मैंने जीवन भर में कभी न खाया था।


——————

क्रूसो की बीमारी

अट्ठारहवीं जून से चौबीसवीं जून तक--दिन भर पानी बरसता रहा, इस कारण मैं घर से बाहर न निकल सका। कुछ कुछ जाड़ा भी मालूम होने लगा। धीरे धीरे सारा शरीर काँपने लगा। मैं रात भर बेचैन पड़ा रहा। सिरदर्द के साथ साथ बुखार चढ़ आया। क्रमशः बेचैनी बढ़ने लगी। इस मानवशून्य टापू में अकेला मैं, बीमारी के भय से ही, अधमरा सा हो गया। हल बन्दर के तूफ़ान के बाद आज मैंने फिर परमेश्वर से प्राणरक्षा के लिए प्रार्थना की। पर मैंने उन से क्या क्या कहा, यह मुझे स्मरण नहीं। उस समय मेरा मन ऐसी घबराहट में था कि मैं एकदम हतज्ञान सा हो रहा था। मेरी बुद्धि ठिकाने न थी। दो एक दिन कुछ अच्छी हालत रही, फिर दो एक दिन बहुत ख़राब मालूम होने लगी। सिर के दर्द से मैं और भी अधिक कष्ट पा रहा था।