सदृश जानवर नज़र आते थे। मैंने कई एक खरगोश मारे परन्तु वे ऐसे, विचित्र शकल के, थे कि उनको खाने की
प्रवृत्ति न होती थी। मज़बूरी हालत में पड़ कर ही लोग ऐसी वस्तु खाते हैं जो खाने के लायक नहीं। अब भी मुझे खाद्य पदार्थ का अभाव न था। बकरे, कबूतर और कछुए-जिन्हें मैं खूब पसन्द करता था—बहुतायत से पाये जाते थे; इसलिए अनाप शनाप चीज़ खाने की मुझे आवश्यकता न थी। मेरी अवस्था यद्यपि अत्यन्त शोचनीय थी तथापि खाद्य-वस्तुओं की कमी न थी, इस कारण मैं हृदय से ईश्वर का कृतज्ञ था।
मैं एक दिन में दो मील से अधिक रास्ता नहीं चलता था। किन्तु देश की दशा देखने के लिए मैं दिन भर इस प्रकार घूमता रहता था कि रात बिताने के अड्डे पर आते आते एकदम थक कर पड़ रहता था। पेड़ के ऊपर या जमीन में थोड़ी सी जगह घेर कर उसके भीतर रात बिताता था जिसमें कोई जन्तु मेरी निद्रित अवस्था में मुझ पर एकाएक आक्रमण न कर सके।
इस तरफ़ समुद्रतट पर आकर देखा, कछुए और पक्षी बहुत थे। पक्षी प्रायः सब मेरे पहचाने हुए थे। जो परिचित न भी थे उनका भी मांस बहुत स्वादिष्ठ था। तब मैंने समझा कि जिधर द्वीप का सब से ख़राब अंश था उधर ही मैंने घर बनाया है। वहाँ डेढ़ वर्ष के भीतर मुझे इने गिने तीन कछुए मिले थे।
मैं जितना चाहता उतना पक्षियों का शिकार कर सकता था। किन्तु बारूद-गोली शीघ्र चुक जाने की आशङ्का से