गई है, एक बार इस द्वीप को चारों ओर-परिक्रमा कर के देखूगा। मेरे राज्य में कहाँ क्या है, कहाँ तक उसकी सीमा है, इसे भी देखूँगा।
इसके लिए मैं नाव पर आवश्यक वस्तुओं का आयोजन करने लगा। पहले उस पर एक मस्तूल लगाया। जहाज़ के पाल के टुकड़े से एक पाल तैयार किया। नाव के अगले हिस्से में और अधःप्रदेश में खाने-पीने को चीज़ रखने के लिए दो बक्स बनाये। नाव के ऊपर छपरी तो थी नहीं, इसलिए छतरी ही को तान कर छपरी की तरह खड़ा कर दिया।
इस प्रकार सब सामान दुरुस्त कर के मैं नाव को समद के किनारे किनारे ले चला। समुद्र में दूर तक जाने का साहस न होता था। एक दिन अपने राज्य की सीमा देखने की इच्छा हुई । मैंने खाने-पीने की सब सामग्री नाव में रख ली। दो दर्जन जौ की रोटियाँ, एक हाँड़ी भर भूने चावल, (आजकल मैं इसी खाद्य को ज़्यादा पसन्द करता था), एक घड़ा पानी, बन्दूक़ और बिछौने के लिए दो एक कपड़े ले लिये।
मैं अपने राजत्व या द्वीपान्तर-वास के छठे साल अपनी काष्ठ-अङ्कित तिथि-गणना के अनुसार छठी नवम्बर को द्वीप देखने के लिए नाव पर सवार हुआ। जितना रास्ता चलने की आशा की थी उससे कहीं अधिक मार्ग मुझको चलना पड़ा। द्वीप बहुत बड़ा न था। किन्तु द्वीप के पूरब ओर समुद्र के भीतर दो मील तक पहाड़ और पत्थर की बड़ी बड़ी चट्टाने थीं जिनमें कितनी ही पानी के ऊपर निकली थीं और कितनी ही डूबी थीं। उसके सामने समुद्र की ओर आध मील चौड़ा