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छाग-पालन

इसके बाद एक वर्ष और बीता। एक साथी का प्रभाव छोड़ कर मेरे मन में और कुछ क्लेश न था। अब मैं एक प्रवीण रफूगर और कुम्हार बन गया। मैं चाक गढ़ कर मिट्टी का एक से एक सुडौल बर्तन बना सकता था, रफूगरी का काम भी मज़े में चला लेता था। सबसे अधिक आनन्द और कार्य-कौशल का गर्व मेरे मन में तब हुश्रा जब मैं मिट्टी का एक टेढ़ा मेढ़ा तम्बाकू पीने का नल तैयार कर सका। तम्बाकू पीने का मुझे खूब अभ्यास था। जहाज़ में तम्बाकू पीने का नल था, किन्तु तम्बाकू न रहने के कारण मैं नल न लाया था। इसके बाद जब इस टापू में मैंने तम्बाकू देखी तब मेरे मन में बेहद अफ़सोस हुआ। टोकरी बुनने में भी मैंने खूब उन्नति कर ली।

मैंने देखा कि बारूद की पूँजी मेरी घटती जा रही है। इस अभाव का पूरा करना मेरे सामर्थ्य से बाहर था। जब यह बिलकुल न रह जायगी तब क्या करूँगा? बन्दूक में क्या डाल कर बकरे का शिकार करूँगा, यह शोच कर मैं बहुत ही आकुल हुआ। अपने इस द्वीप-निवास के तीसरे साल मैंने एक बकरी के बच्चे को पोसा था, यह पहले लिख पाया हूँ। उसकी एक जोड़ी मिल जाय तो उसे भी पाल लँ, मैं इसकी खोज में था, पर उसकी जोड़ी मिलने का सुयोग न हुश्रा। आखिर वह मेरा पालतू बकरा बूढ़ा हो कर मर गया। मैं मोह के मारे उसको मार कर न खा सका।

यह मेरे द्वीप-वास का ग्यारहवाँ साल है। जब बारूद घट गई तब मैं बकरों को पकड़ने के लिए फन्दा बना करके उसी से काम लेने लगा। फन्दे में बकरे फँसते थे ज़रूर