पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/१४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३२
राबिन्सन क्रूसो।


परन्तु फन्दे में उन्हें फँसाने के लिए मैं जो खाने की चीज़े रख देता था उन्हें खाकर और फन्दे को तोड़ ताड़ कर वे निकल भागते थे। आखिर बार बार धोखा खाकर मैंने खब मज़बूत फन्दा बनाया। एक दिन मैंने एक साथ तीन फन्दे लगा दिये। एक में एक बूढ़ा बकरा श्रा फँसा, और दूसरे में तीन बच्चे, जिनमें दो बकरियाँ और एक बकरा था।

बूढ़े बकरे को पाकर मैं बड़ी दिक्कत में पड़ा। उसके पास जाते ही वह इस तरह बब बब करके भयानक रूप धारण कर सींग-पूँछ उठा कर मेरी ओर दौड़ता कि मैं उसके निकट जाने का साहस न कर सकता था, उसे पकड़ना तो दूर रहा। यदि मैं उसको जीता न पकड़ सका तो उसको मार कर ही क्या होगा-यह सोचकर मैंने उसे छोड़ देना ही अच्छा समझा। मैंने फन्दे का मुँह खोल दिया। खोलते ही वह प्राण लेकर खूब ज़ोर से भागा। उसको छोड़ देने पर मुझे अफ़सोस होने लगा। यदि उसे कुछ दिन भूखा रहने देता, और यत्न करता तो वह सुस्त पड़ जाता। भूख एक ऐसी चीज़ है जिससे लाचार हो कर सिंह भी वश में हो जाता है। कहावत है, "आग की ज्वाला सही जाती है पर पेट की ज्वाला नहीं सही जाती।" मैंने बकरे को छोड़ दिया और तीनों बच्चों को रस्सी से बाँध कर किसी तरह खींच खाँच कर ले गया।

कुछ दिन तक उन बच्चों ने कुछ न खाया। आखिर अन्न आदि मधुर खाद्य के लोभ में पड़कर उन्होंने कुछ कुछ खाना प्रारम्भ किया। जब मैं इन बच्चों को पालना चाहता हूँ तब इनके चरने के लिए मुझे एक घेरेदार जगह का प्रबन्ध