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अपरिचित पद-चिह्न।


और इस बात का स्मरण हुआ कि तीन दिन से बकरियों का दूध भी नहीं दुहा गया है। न मालूम उससे उन्हें कितना कष्ट होता होगा। सम्भव है, कितनी ही बकरियों का दूध एक दम सूख गया हो। सब सोच विचार कर मैं किले से बाहर निकला। बाहर तो निकला पर एकदम निर्भय नहीं हुआ। कुछ दूर आगे जाता और फिर पीछे की ओर ताकताथा। किसी किसी दफ़पीठ पर की टोकरी फेंक कर घर भाग जाने को जी चाहता था।

इस प्रकार डरता हुआ दो-तीन दिन तक घर से बाहर आयागया। डरने की जब कोई जगह न देखी तब मन में कुछ विशेष साहस हुआ और उस पदचिह्न को देखने के लिए फिर समुद्र-तट पर गया। जा कर देखा, जहाँ पैर का चिह्न था वहाँ खाली पैरों मैं कभी नहीं गया था, दूसरे मेरा पैर भी उतना लम्बा न था। इससे मेरा हृदय फिर भय से काँप उठा। मैं अपने हृत्कम्प को किसी प्रकार न रोक सका। मेरा सम्पूर्ण शरीर थर थर काँपने लगा। तब मैंने अपने मन में यही समझा कि इस द्वीप में कोई बाहर का आदमी पाया है या इसी द्वीप के किसी अंश में मनुष्य का निवास है। सम्भव है, किसी दिन एकाएक किसी मनुष्य से भेंट हो जाय। अब मैं अपनी रक्षा के लिए क्या उपाय करूँ-इसका कुछ निश्चय न कर सका।

डरने से लोगों की बुद्धि लोप हो जाती है। पहले मन में यही पाया कि घेरे को तोड़ ताड़ कर बकरों को जङ्गल में भगा दूँ, खेत को खोद कर उजाड़ डालूँ और कुञ्जभवन आदि स्थान को नष्ट भ्रष्ट कर दूँ। इससे कोई मेरा पता न पावेगा। कुछ देर के बाद खूब सोच कर देखा तो जान पड़ा कि ऐसा करने से उस विपत्ति की अपेक्षा लाख गुना अधिक विपत्ति का भय उठ खड़ा होगा। मैं वैसा कुछ न कर सका।