मेरा तोता मेरे साथ आत्मीयभाव से मीठी मीठी बातें करता था। पक्षी के मुँह से एस स्पष्ट बात मन और कभी नहीं सुनी थीं। वह छब्बीस वर्ष मेरे पास रहा। मेरा कुत्ता भी, बन्धु की भाँति सोलह वर्ष मेरे साथ रह कर, वृद्ध होकर मर गया। मेरी पालतू दो तीन बिल्लियाँ भी मेरे आत्मीयजनों के अन्तर्गत थीं। और भी कितने ही पालतू बकरे, दो एक, तथा कितने ही जल घर पक्षी मेरे साथी बन गये थे। उन चिड़ियों के मैंने डैने कतर दिये थे। इससे वे मेरे घेरे के पेड़ों पर रहा करती थीं। उन्हें देख कर मैं अत्यन्त आनन्द पाता था। किन्तु मनुष्य-जीवन का सुख सदा निरवच्छिन्न नहीं रहता जिसे दूर करने की इच्छा होती है वही आगे आ खड़ा होता है। जिसे दुख समझते हैं उसी के भीतर सुख का नूतन बीज छिपा रहता है।
दिसम्बर का महीना है। खेती का समय है। मैं खूब तड़के बिछौने से उठ कर बाहर मैदान में गया। समुद्र के किनारे अन्दाज़न दो मील पर आग जलते देख कर मैं अचम्भे में आ गया। यह आग द्वीप के अपर भाग में न थी, मेरे दुर्भाग्य से मेरे ही घर की ओर थी।
मैं भय और आश्चर्य से स्तब्ध होकर अपने कुञ्जभवन के भीतर छिप रहा। कदाचित् अलक्षित भाव से वे असभ्यगण मुझ पर आक्रमण करेंइस भय से मैं आगे बढ़ने का साहस न कर सका। वहाँ भी देर तक ठहरना उचित नहीं समझा। क्या जानें, यदि मेरे खेत या मेरे हाथ का कोई काम देखने से उन्हें यहाँ मनुष्य-वास का गन्ध मिले तब तो वे लोग मेरा पता लगाये बिना न छोड़ेंगे। यह सोच कर मैं अपने किले के पास दौड़ आया और बाहर जो कुछ चीज़ें