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द्वीप में असभ्य।


थीं उन्हें क़िले के भीतर रख दिया, जिसमें किसी को यह न मालूम हो कि यहाँ कोई आदमी रहता है। फिर भीतर जाकर बाहर की सीढ़ी खींच ली।

अब मैं कुछ स्थिर होकर आत्म-रक्षा का प्रबन्ध करने लगा। बन्दूक़ों को भरा और किले की दीवार से सटा कर रख दिया। अब मैं ईश्वर से सहायता की प्रार्थना करने लगा। मैं किले के भीतर दो घंटे किसी तरह बैठा, फिर बाहर की खबर लेने के लिए व्यग्र हो उठा। मेरे पास चर तो था नहीं जिसे जासूसी के लिए भेजता। कुछ देर और अपेक्षा करके सीढ़ी लगा कर पहाड़ के ऊपर ठहराव की जगह उतर आया। फिर सीढ़ी को पहाड़ से लगा कर उसकी चोटी पर चढ़ गया। वहाँ लेट कर स्थिर दृष्टि से देखा, आग के चारों ओर नौ असभ्य बैठे हैं, जो सब के सब नंगे हैं। ऐसा जान पड़ा जैसे वे लोग राक्षसीवृत्ति को चरितार्थ करने के लिए मनुष्य का मांस पका रहे हों।

उन लोगों के साथ दो डोंगियाँ थीं। दोनों को खींच कर उन्होंने बालू के ऊपर ला रक्खा है। अभी भाटा था, शायद ज्वार आने पर नाव को बहा कर ले जाने की अपेक्षा से वे लोग बैठे हैं। पीछे उन लोगों को अपने घर की ओर और इतने सन्निकट आते देख कर में तो भय से सूख कर काठ हो गया। किन्तु इतना मैं समझ गया कि वे लोग भाटा पड़ने के समय प्राते हैं और ज्वार आते ही चल देते हैं। इसलिए ज्वार के समय में खूब निश्चिन्त होकर खेती-बारी का काम कर सकूँगा। यह सोच कर मैं खुश हुआ।

ज्वार आने के एक प्राध घंटा पहले ही से वे लोग आग की परिक्रमा कर के नाना प्रकार के अङ्ग विक्षेप के साथ