लगा। पर किसी तरह जलपथ से जाने को मैं राज़ी न हुआ।
अन्तःकरण के इङ्गित को सदा मानना चाहिए। मैंने जिन दो
जहाज़ों पर जाने की बात ठीक की थी उनमें एक को तो रास्ते
ही में किसी लुटेरे जहाज़ ने गिरफ़्तार कर लिया और दूसरा
कुछ दूर जाकर टूट गया। यदि मैं इन दोनों में से किसी पर
सवार होता तो फिर भारी संकट में पड़ता।
मैंने स्थलमार्ग से ही जाना स्थिर किया। वृद्ध पोर्चुगीज़ कप्तान ने मुझे एक साथी ढूँढ़ दिया। वह लिसबन के एक अँगरेज व्यवसायी का बेटा था। वह भी इँगलैंड जायगा। इसके बाद दो अँगरेज़ और दो पोर्चुगीज़ भी आ मिले। अब हम लोग छः यात्री हुए। साथ में पाँच नौकर थे। सब मिलाकर ग्यारह आदमी हुए। हम लोगों ने अस्त्र-शस्त्रों से लैस हो घोड़े पर सवार हो लिसबन से यात्रा की। एक तो मैं सब से उम्र में बड़ा था, दूसरे साथ दो नौकर थे। इसके सिवा मैैं ही मूलयात्री था, इससे सभी मुझ को कप्तान और सर्दार कहने लगे।
हम लोगों ने मेड्रिड में कई दिन ठहर कर शहर देखा। परन्तु ग्रीष्म बीतने ही पर था यह जान कर हम लोग झट पट वहाँ से रवाना हुए। अक्तूबर के मध्य ही में कहीं कहीं बर्फ़ पड़ने लगी है, यह सुन कर भय से प्राण सूखने लगे। फ्रांस की सीमा तक आते आते हम लोगों ने देखा कि यथार्थ ही पाला पड़ रहा है। मैं उत्कट गरमी के मुल्क में बहुत दिनों तक रह चुका था इससे अब यह जाड़ा असह्य मालूम होने लगा। उँगलियाँ पाले से ठिठुर कर गलने लगीं। फ्राइडे ने बर्फ़ से ढका पहाड़ और ऐसा उत्कट जाड़ा जन्म भर में