पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/२५२

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जीवन-वृत्तान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार।


कभी नहीं देखा था। वह भय से काँपने लगा। एक तो मार्ग चलने की थकावट, उस पर जाड़े की शिद्दत! फफोले पर मानो नमक छिड़का गया। रास्ते में अधिक बर्फ पड़ने लगी। जो मार्ग पहले दुर्गम्य था वह अब अगम्य हो गया। ठण्ड कम होने की आशा से हम लोग बीस दिन रास्ते में ठहर गये, किन्तु शीत घटने की कोई सम्भावना न देख कर फिर अग्रसर हुए। सभी कहने लगे कि इस मौसम में इतना जाड़ा कभी नहीं होता था। मैंने समझा, यह सब मेरे ही दुर्भाग्य का फल है। रास्ते में एक पथ-प्रदर्शक से हमारी भेंट हुई। उसने हम लोगों को ऐसे मार्ग से ले जाना स्वीकार किया कि जिस रास्ते में बर्फ न मिलेगी। यदि मिले भी तो वह जम कर ऐसी कठोर हो गई होगी कि उसके ऊपर घोड़े सुख से चल सकेंगे। किन्तु इस रास्ते में बनैले जन्तुओं का भय अधिक है। मैंने उससे कहा-"चौपाये जन्तुओं का उतना भय नहीं, जितना अधिक दुपाये नृशंस मनुष्यों का होता है।" उसने कहा-"रास्ते में चोर-डाकुओं का भय नहीं है। भय केवल हिंस्र जन्तुओं का है। जहाँ तहाँ रास्ते में भेड़िये ज़रूर हैं। इस समय सारा जङ्गल और मैदान बर्फ़ से ढँक जाने के कारण, खाद्य-वस्तु के अभाव से, वे बड़े ख़ूँखार हो रहे हैं।" मैंने कहा,-वे भले ही रास्ते में रहे, हम लोग उनकी परवा नहीं करते। उनको शान्त करने के लिए हम लोगों के पास यथेष्ट अस्त्र-शस्त्र हैं।

१५ वीं नवम्बर को हम लोग उस व्यक्ति के प्रदर्शित पथ से रवाना हुए। रास्ते में बारह मनुष्य और मिले। उनमें कोई फ़्रांसीसी था और कोई स्पेनिश। वे अपने नौकरों सहित हम लोगों के दल में आ मिले। पथ-प्रदर्शक हम लोगों को घुमा