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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/२६१

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राबिन्सन क्रूसो ।


पेड़ के तने पर बहुत सी बारूद बिछा दो"। वह बारूद बिछाकर ज्यों ही वहाँ से हट आया त्यों ही भेड़ियों का झुंड उस बारूद पर आ गया। जिस काठ पर बारूद रक्खी गई थी उस पर मैंने तुरन्त तमंचे की आवाज़ की। तमंचे की आग का स्पर्श होते ही वह लम्बी बारूद की राशि एक साथ बल उठी। इससे कितने ही भेड़िये झुलस गये, कितने ही भय से उछल कर हम लोगों के व्यूह के भीतर आ पड़े, उन को एक ही पल में हम लोगों ने तितर बितर कर दिया। बाक़ी एकाएक प्रकाश होते देख पीछे की ओर मुड़े। तब मैंने फिर सब को बन्दूक़ मारने का आदेश किया। बन्दूक़ मार कर हम लोग खुब ज़ोर से चीत्कार कर उठे। जितने भेड़िये बच रहे थे सब पूँछ उठा कर भागे। हम लोगों ने साहस करके कुछ दूर तक उनका पीछा किया और कितनों ही को तलवार से दो टुकड़े कर डाला। उन भेड़ियों का आर्तनाद सुन कर और सब अपनी जान ले ले कर भागे।

हम लोगों ने अब की बार कोई पचास साठ भेड़िये मारे। दिन होता तो और मारते। मार्ग निष्कण्टक होते ही हम लोग वहाँ से रवाना हुए। हम लोगों को करीब एक मील रास्ता और तय करना था। जाते जाते हम लोगों ने कई बार भेड़ियों का गरजना सुना। रास्ते में कितनी ही विभीषिकायें देखीं। एक घंटे के बाद हम लोग एक शहर में पहुँचे। वहाँ के लोग भी भेड़ियों और भालुओं के भय से त्रस्त होकर अस्त्र-शस्त्र ले दिन-रात चिल्ला चिल्ला कर शहर का पहरा देते थे। वहाँ भी कल्याण नहीं, निश्चिन्त होकर रहने का सुभीता नहीं।