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जीवन-वृत्तान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार।

दूसरे दिन सबेरे हम लोगों के पथ-प्रदर्शक को जख्मी हाथ के सूजने से ज्वर हो पाया। वह वहाँ से आगे न जा सका। तब हम लोग एक नये पथ-प्रदर्शक को साथ ले टुलुज शहर को गये। मैंने अपने दोनों कान मल कर सौगन्द खाई कि फिर कभी इस रास्ते कहीं न जायँगे। इस मार्ग की अपेक्षा जल-थल में नाव डूब जाने से पानी में डूब जाना कहीं अच्छा है।

टुलुज से पैरिस, वहाँ से कैले, और कैले से १४ वीं जनवरी को हम लोग निर्विघ्न डोवर पहुँचे। मैंने अपनी पूर्वपरिचित कप्तान की विधवा स्त्री के पास अपनी सब धनसम्पत्ति रख दी। वह विश्वास-पूर्वक मेरे साथ उत्तम व्यवहार करने लगी।

मैंने अपने मित्र वृद्ध कप्तान के ज़रिये ब्रेज़िल की ज़मीदारी बेच कर ढाई लाख रुपये प्राप्त किये। इस प्रकार मेरे अति-विचित्र जटिल जीवन-नाट्य के प्रथम अङ्क का यवनिका-पात हुआ। प्रारम्भ में तो मैंने बहुत कष्ट उठाये, पर अन्त में मुझे बहुत ही सुख मिला।