हैं और उसी से भूत-प्रेत देख पड़ते हैं; वे भूतों के साथ बाते करते हैं और उनकी बातें सुन सकते हैं। यथार्थ में भूत है कि नहीं, यह मैं नहीं जानता। अब तक तो मैंने कभी भूत नहीं देखा, किन्तु दिमाग गर्म होने से जो मन में भाँति भाँति की भ्रान्तियाँ उत्पन्न होती हैं इसका मुझे पूर्णपरिचय है। मस्तिष्क उत्तेजित होने से लोगों के मन में विचित्र भावनायें होने लगती हैं। कभी कभी मेरे मन में यह भावना होती थी कि मैं अपने द्वीप में गया हूँ और अपने किले के भीतर बैठ कर स्पेनियर्ड, फ़्राइडे के बाप तथा विद्रोही नाविकों के साथ बातें कर रहा हूँ; उनका पारस्परिक विवाद मिटा कर कर्तव्य की मीमांसा कर रहा हूँ और अपराधियों के दण्ड की व्यवस्था कर रहा हूँ। इस तरह सोचते-विचारते कई साल गुज़र गये। मेरे पास आराम की सब सामग्री थी, फिर भी मुझे दिन-रात छटपटी लगी रहती थी। न दिन को चैन मिलता था न रात को नींद आती थी। मैं हर घड़ी सोच-सागर में डूबा रहता था। एक दिन मेरी स्त्री ने कहा, "आपके चित्त की अवस्था देख कर यही जान पड़ता है कि ईश्वर किसी महान् उद्देश से आपको इस ओर खींच रहे हैं। इस समय मैं और बाल-बच्चे आपके बाधक हो रहे हैं। मैं आपको छोड़ कर अकेली न रह सकूँगी। मेरी मृत्यु होने ही से आप निर्बन्ध हो सकते हैं। अभी आप अपने को एक प्रकार से बद्ध समझें।" यह कहते कहते उस बेचारी की आँखों से आँसू टपक टपक कर गिरने लगे। इसके बाद फिर उसने कहा, "इस बुढ़ापे में आपका देशदेशान्तर का घूमना अच्छा नहीं। आपकी अब वह उम्र नहीं जो स्वतन्त्रता-पूर्वक देश-भ्रमण करें, यदि आपका जाना ज़रूरी ही होगा तो मैं भी आपके साथ चलूँगी।" स्त्री की
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राबिन्सन क्रूसो।