ऐसी स्नेह-भरी मीठी बात सुनकर और मीठे तिरस्कार का इशारा पाकर मुझे कुछ चेत हुआ। तब मैंने समझा कि मैं यथार्थ में पागलपन करने को उद्यत हुआ हूँ। मनही मन अनेक तर्क-वितर्क कर के मैंने अपनी चित्त-वृत्ति को रोका।
मैंने बेडफ़ोर्ड जिले में एक छोटा सा गँवई-मकान खरीद लिया। वह मकान काम चलाने लायक़ अच्छा था। हाते के भीतर ज़मीन भी बहुत थी। मैंने खेती-बाड़ी में जी लगाया। छः महीने के भीतर मैं पक्का किसान हो गया। अनाज से बुखारी भर गई, गाय-बछड़ों से गोठ भर गया। कई घोड़े भी खरीद लिये। नौकर-चाकरों से घर भर गया। कोई घर का काम करता, कोई बाहर का और कोई खेती-बाड़ी की देखभाल करने लगा। मैं गृहस्थी के कामों में लग कर समुद्र-यात्रा की बात एक प्रकार से भूल ही गया। मैं नगर-निवास के समस्त पाप-प्रलोभन से बच कर निश्चिन्तभाव से देहात में रह कर समय बिताने लगा।
किन्तु मेरे इस भरे-पूरे सुख में भगवान् ने मेरे एक-मात्र स्नेहबन्धन को तोड़ दिया; मेरे बने-बनाये घर को बिगाड़ दिया। मेरे दबे हुए भ्रमणात्मक रोग को फिर उभड़ने का अवसर दिया। मेरी स्त्री का देहान्त होगया। मैं यहाँ उसके गुणों का सविस्तार वर्णन करके पृष्ठों की संख्या बढ़ाना नहीं चाहता किन्तु इतना ज़रूरी है कि वह मेरे विश्राम की एकमात्र आश्रय थी; संसार-बन्धन और समस्त उद्यमों की केन्द्र थी। मेरी माता के गरम आँसू, पिता के उपदेश, मित्रों के परामर्श और मेरा अपना विवेक जिस समुद्रयात्रा से मुझे न रोक सका उसे मेरी पत्नी ने अपने मधुर उपदेश से रोक