रक्षा का भार वृद्धा विधवा ही को सौंपा। यह भार उपयुक्त व्यक्ति को सौंपा गया था। कारण यह कि कोई माता भी उससे बढ़ कर अपने बच्चों का यत्नपूर्वक लालन-पालन नहीं कर सकती। जब मैं लौट कर देश पहुँचा तब भी वह जीवित थी। मैं उसका काम देख कर बहुत प्रसन्न हुआ था और उसे धन्यवाद देकर अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का मुझे अवसर मिला था।
१६९४ ईसवी की ८ वीं जनवरी को हम और फ़्राइडे अपने भतीजे के जहाज़ पर सवार हुए। छप्परदार-नाव के सिवा अपने द्वीप के लिए मैंने अनेक प्रकार की चीजें साथ रख ली। इस बार मैंने कई नौकरों को भी अपने साथ ले लिया। यह इसलिए कि जब तक मैं उस द्वीप में रहूँगा तब तक वे लोग मेरी मातहती में काम करेंगे। इसके बाद जो वहाँ रहना चाहेंगे, रहेंगे और जो देश पाना चाहेंगे वे मेरे साथ लौट आवेंगे। मैंने दो बढ़ई, एक कुम्हार, एक पीपे बनाने वाले और एक दर्जी को साथ ले लिया। पीपे बनाने वाला अपनी वृत्ति के सिवा कुम्हार का भी काम करना जानता था और नक़शा खोदने आदि का भी काम जानता था। वह बड़े काम का आदमी था। मैंने और वस्तुओं की अपेक्षा कपड़े बहुतायत से ले लिये थे जिनसे टापू भर के लोगों का काम सात वर्ष तक मज़े में चल सकता। इसके अतिरिक्त दस्ताने, टोपी, जूते, मोज़े, बिछौने, बर्तन, कल आदि गृहस्थी की प्रायः सभी आवश्यक वस्तुएँ जहाज़ पर लाद लीं। युद्ध का भी कुछ सामान साथ रख लिया। सौ बन्दूक़ें, तलवार, पिस्तौल, गोली, बारूद, तथा शीशे और पीतल की बनी दो मज़बूत तो भी जहीज़ पर रख लीं।